________________ प्रतीक्षा करने लगते हैं; जिस में माल से भरे हुए घोड़े, गाड़ियाँ, ऊँट, बैल आदि मंडी की ओर जाने लगते हैं। जिसमें राजा, महाराजा आदि समृद्धिवान मनुष्यों के सामने सुखोत्पादकसुखदायक-गीतों का गाना होने लगता है, जिसमें पंडित लोग शीघ्रता के साथ संस्कृत पाठशालाओं की ओर जाने लगते हैं; जिसमें वन, शहर और उद्यान-सर्वत्र शान्ति छा जाती है; जिसमें नदी, सरोवर आदि का जल स्वच्छ होता है; और जिसमें पथिक-मुसाफिर अपने घर की ओर जाने की तैयारी करते हैं। उसी प्रातःकाल के समय में तीर्थकर भगवान श्री अहंतदेव, देवरचित समवसरण में अशोक वृक्ष के नीचे बैठ कर, देशना-धर्मोपदेश देते हैं। वह देशना सामान्यतया एक पहर तक दी जाती है / यह देशना सात नय, चार निक्षेप, दो प्रमाण, सप्तभंगो और स्याद्वाद शैलीयुक्त होती है। बुद्धि के आठ गुण पूर्वक गणधर उस देशना को ग्रहण करते हैं। फिर वे ग्रहीत-ग्रहण किये हुए-अर्थ के अनुसार द्वादशांगीकी रचना करते हैं। ___ यह द्वादशांगी अर्थ की अपेक्षा से 'नित्य' है। क्योंकि समस्त तीर्थकर महाराज यद्यपि देशनाएँ मिन्न मिन्न देते हैं, तथापि उन सब का अर्थ समान ही होता है / और शब्द रचना की अपेक्षा से यह ' अनित्य ' है। चौवीसों तीर्थकर महाराज के गणधर