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साथ ही हम बंगाल निवासियों से भी यही अनुरोध करेंगे कि वे इस महान् आध्यात्मिक योगी के दर्शन एवं सदुपदेश से • अपनी आत्मा का कल्याण करें।
विनीत
डॉ० त्रिगुण सेन (मेयर, कलकत्ता कारपोरेशन), केशवचन्द्र बसु ( डिप्टी मेयर, कलकत्ता कारपोरेशन), जुगलकिशोर बिड़ला · ( सुप्रसिद्ध उद्योगपति), डा० सुनीति कुमार चटर्जी (अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल राज्य सभा ), शंकरदास बनर्जी (स्पीकर, पश्चिम बंगाल विधान - सभा), डॉ० प्रतापचन्द्र गुहा राय (उपाध्यक्ष, पश्चिम बंगाल राज्य सभा ), आशुतोष मल्लिक (डिपुटी स्पीकर, पश्चिम बंगाल विधान सभा), कालीपदो मुखर्जी (मंत्री, पुलिस, सुरक्षा एवं गृहविभाग प० बं०), ईश्वरदास जालान ( मंत्री, स्वायत्त शासन एवं पंचायत विभाग प० बं०), विमलचन्द्र सिन्हा (मंत्री, भूमि एवं भूमि राजस्व विभाग प० बं०), राय हरेन्द्रनाथ चौधरी ( मंत्री, शिक्षा विभाग प० बंगाल), खगेन्द्र दास गुप्ता (मंत्री व विडि एवं हाउसिंग बंगाल), डॉ० अनाथवन्धु राय (मंत्री स्वास्थ्य विभाग प० बंगाल), भूपति मजुमदार ( मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग विभाग प० बंगाल), श्यामाप्रसाद वर्मन ( मंत्री, एक्साइज विभाग प० बंगाल), रामकुमार भुवालका ( एम० एल० सी०), आनन्दीलाल पोद्दार (एम० एल० ए०), बद्रीप्रसाद पोद्दार ( एम० एल० सी०), विजयसिंह नाहर (मंत्री, प० बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ), किशोरीलाल ढांढनिया (काउंसिलर, कलकत्ता कारपोरेशन), सुधांशु कुमार सेठ ( काउंसिलर, कलकत्ता कारपोरेशन), हरिनारायण सादानी ( काउंसिलर, कलकता कारपोरेशन), डॉ० कालीदास नाग, कालीप्रसाद खेतान, गोपीकृष्ण कानोडिया, सजनीकान्त दास शरदचन्द्र पण्डित, सुनीलकान्त घोष (बाजार पत्रिका), कृष्णचन्द्र अग्रवाल (संचालक, दैनिक विश्वमित्र), सूर्यनाथ पांडेय (संचालक, सन्मार्ग), नेपाल राय (एम० एल० ए० ) ।
आचार्यश्री के कलकत्ता अग्गमन पर जैन एवं जैनेतर समाज ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। नगर प्रवेश के समय बड़ी - संख्या में जनसमुदाय इनके दर्शन को उमड़ पड़ा। दर्शनों के लिए विशाल भीड़ के कारण शोभायात्रा का संक्षिप्त कार्यक्रम भी सात घंटे में सम्पन्न हो सका ।
कलकत्ता प्रवास में आचार्यश्री ने 'योगसार' पर विशेष प्रवचन किए। उनके उपदेशामृत की सरल, सरस एवं सुगम शैली से - प्रभावित होकर बंगाली समाज भी बड़ी संख्या में धर्मसभा में आने लगा । आचार्यश्री के पुण्य प्रताप से कलकत्ता जैसे शहर में संघ के लिए करते थे। एक दिन आचार्यश्री ने अपनी साधना को लिया कि मैं उसी चौके में आहार के लिए जाऊंगा संकल्प पूरा भी हुआ ऐसी है महाराज की दिव्य
४० चौके लगने लगे थे। आचार्यश्री भी आहार के लिए विचित्र संकल्प लिया विकसित करने एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण करने के लिए यह नियम (आंकड़ी) जिसके द्वार पर आवक नारियल लिए हुए बड़े हों दैवयोग से यह
शक्ति !
आचार्यों के कलकत्ता चातुर्मास में जैन धर्म की विशेष प्रभावना हुई। उन्होंने अनेक बंगाली भाई-बहिनों को जलतोरी (मछली) एवं शराब के त्याग का नियम दिलवाया। इस चातुर्मास में कुछ सहृदय बंगाली सज्जनों ने आचार्यश्री से अपने निवासस्थान पर आहार ग्रहण करने का भी विनम्र अनुरोध किया। आचार्यश्री ने उनकी भावना का सम्मान करते हुए शत रखी कि चौका लगाने से पूर्व उन्हें सदा के लिए मांस भक्षण का त्याग करना होगा। इस चातुर्मास में आचार्यश्री ने बंगला भाषा का अभ्यास किया और 'दिगम्बर मुनि' नामक संक्षिप्त बंगला ग्रन्थ की रचना की। आपकी प्रेरणा से तत्त्व भावना' एवं 'स्तोत्र सार संग्रह' का प्रकाशन भी इन्हीं दिनों सम्भव हो पाया।
आचार्यश्री ने अपने सरल एवं गरिमामय व्यक्तित्व से कलकत्ता के जैन एवं जैनेतर समाज में विशेष स्थान बना लिया था । बंगाली बन्धु तो आचार्यश्री की निर्दोष दिनचर्या एवं त्यागमय जीवन को देखकर उनके प्रति श्रद्धायुक्त हो गए थे। चातुर्मास सम्पन्न करने के पश्चात् जब आचार्यश्री ने कलकता से सम्मेदशिखर के लिए प्रस्थान किया तब लाखों की संser में जनसमुदाय ने उन्हें अपूर्ण विदाई दी । महाराज श्री के विहार के समय सभी के कंठ से समवेत स्वर में यह गीत गूंज रहा था
कालजयी व्यक्तित्व
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