Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
अलक्ष्मी
प्राचीन चरित्रकोश
अलंबुसा
ब्र. ९-१९)। समुद्र में से विषके बाद तथा लक्ष्मी के धारण करनेवाला था। इसका तथा सात्यकी का बड़ा भारी पहले यह उत्पन्न हुई । अतएव इसे ज्येष्ठा कहते हैं। युद्ध हुआ था। अत्यंत संतप्त हो कर इसने सात्यकी पर ___ महाभारत के अनुसार, प्रथम विष, तदनंतर यह कृष्ण- | आक्रमण किया । परंतु सात्यकी ने इसका वध किया रूपधरा ज्येष्ठा, तथा तदनंतर चन्द्र उत्पन्न हुआ (म. अ. (म. द्रो. ११५)। १६.३४ कुं.)। इसका विवाह दुःसह से हुआ। आगे, | २. एक नरभक्षक राक्षस । यह बकासुर का भाई था। दुःसह पाताल में जाने के बाद, यह अकेली ही पृथ्वी पर (म. स्त्री. २६.३७)। इसके भाई का वध भीम ने किया रही (लिंग २.६)। बड़ी का विवाह होने के पहले छोटी था। इस बैर का स्मरण कर, भारतीय युद्ध में पांडवों का का विवाह नहीं हो सकता । इसका विवाह नही हो रहा | नाश करने के लिये, इसने दुर्योधन का पक्ष लिया था। था, इसलिये इसकी कनिष्टं भगिनी लक्ष्मी का विवाह रुक यह काजल के समान काला था (म. द्रो. ८४)। इसका गया। अतः इसका विवाह एक ब्राह्मण के साथ करा दिया। तथा भीम का भयंकर युद्ध हुआ। यह इन्द्र के लिये भी उस ब्राह्मण ने इसका त्याग किया । तब यह एक पीपल | अजेय था। परन्तु शूर सात्यकी ने ऐन्द्रास्त्र की योजना के वृक्ष के नीचे जा कर बैठ गई। हर शनिवार को वहाँ कर, इसे युद्ध से भगा दिया (म. भी. ७७-७८; द्रो. लक्ष्मी अपनी बहन से मिलने आती है । इस लिये, ८४) । इसका तथा अभिमन्यु का एक बड़ा युद्ध हुआ। शनिवार को पीपल लक्ष्मीप्रद, तथा अन्य दिनों में परंतु उसमें इसका ही पराभव हो कर यह भाग गया (म. स्पर्श करने से दारिद्य देनेवाला माना जाता है (सन सुजात- भी. ९६-९७) । अर्जुन के साथ भी इसका यद्ध हुआ था संहितान्तर्गत कार्तिकमा.)। उद्दालक के साथ इसका (म. द्रो. १४२.३४-४१)। अंत में, घटोत्कच के साथ विवाह हुआ था । इसे वैदिक कार्य प्रिय नही था । मद्य, | इसका बड़ा ही मायावी द्वंद्वयुद्ध हुआ, तथा इसकी मृत्यु द्यूत इ. ही अधिक प्रिय था। यह देख कर उद्दालक ने हो गई (म. भी. ४३; द्रो. ८४; क. २)। किर्मीर इसे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठाया, तथा स्वयं कहीं चला बकासुर का भाई था (म. व. १२.२२), तथा अलंबुस गया। तब यह ज्येष्ठा रुदन करने लगी। तब लक्ष्मी, विष्णु भी बकासुर का भाई ही था (म. द्रो. ८३.२१-२३; म. के साथ इसका समाचार पूछने आई। विष्णु ने उसे पीपल स्त्री. २६.३७)। इसकी अन्त्येष्टि धर्मराज ने की। -के तने के पास रहने के लिये कहा, तथा बताया कि, जो |
___ अलंबुसा वा अवलंबुसा-एक देवस्त्री। एक बार भी वहाँ तुम्हारी पूजा करेंगे, उन्हें लक्ष्मी प्राप्त होगा ब्रह्मदेव की सभा मे नृत्य करते समय हवा से इसके वस्त्र (पद्म. उ. ११६)।
उडे। तब वहाँ उपस्थित अष्टवसुओं में से विधूमा नामक वसू, __ अलंबल-जटासुर का पुत्र । यह एक नरभक्षक | इसे देख कर कामपीडित हआ। तब इन दोनो को ब्रह्मदेव राक्षस था (म. द्रो. १४९.५:७; १९)। इसके पिता का का शाप मिल कर, विधूमा को मनुष्ययोनी के राजकुल में भीम ने नाश किया, इसलिये, यह भारतीय युद्ध में दुर्योधन सहस्रानीक नाम से, तथा अलंबुसा को कृतवर्मा राजा के पक्ष को मिल गया। यह महारथी था तथा मायावी | कुल में मृगवती नाम से जन्म लेना पड़ा । आगे चल कर, युद्ध में कुशल था । इसी युद्ध में, घटोत्कच ने इसका सिर इन दोनों का विवाह हो कर अलंबुसा गर्भवती हई। तब रक्त काट कर, उस सिर को दुर्योधन के रथ में फेक दिया के समान लाल कुएँ में इसके स्नान करने के कारण, एक (म. द्रो. १४९.३२-३६)।
पक्षी ने पका फल समझ कर इसे ऊपर उठाया, तथा उँचाई ___ अलंबुषा-कश्यप तथा प्राधा की अप्सरा कन्याओं में पर से उदयाचल पर्वत की गुफा में डाल दिया। उससे से एक । इन्द्र, दधीचि के तप से काफी डरता था । अतः, इसे मूर्छा आ गई । परंतु शीघ्र ही होश में आ कर, यह इन्द्र ने इसे उसके यहां तप भंग करने के लिये भेजा। पतिविरह के कारण शोक करने लगी । इतने में जमदग्नि इससे दधिची से सारस्वत नामक पुत्र हुआ। इसने दिष्टवंश | मुनि ने इसका विलाप सुन कर इसकी सांत्वना की, तथा के बंधुपुत्र तृणबिंदु का वरण किया था, तथा उससे इसे | इसे अपने आश्रम में लाया। कुछ काल बाद यह प्रसूत इड़विड़ा नामक कन्या हुई (भा. ९. २.३१; ब्रह्माण्ड. होकर, इसे उदयन नामक पुत्र हुआ । आगे चल कर, ३. ७. ३५-४०)।
सहस्त्रानीक को यह वार्ता मालूम होते ही, उदयाचल पर __अलंबुस-दुर्योधन पक्षीय एक राजा । यह युद्ध से जा कर पुत्र समवेत, उसने इसे राज्य में वापस लाया। कभी भी न भागनेवाला, तथा शरासन एवं सुवर्णकवच तदनंतर उदयन को गद्दी पर बिठा कर, उसने अलंबुसा