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करते हुए इस लघु दास ने आपके ही नाम से इस टीका का उक्त नाम रखा है । आनन्द का विषय है कि आपके नाम की महिमा से आज श्री गणपतिगुणप्रकाशिका' टीका निर्विघ्न समाप्त हो गई है ।
टीका के आधार
इस टीका को लिखते समय मेरे पास एक संस्कृतटीका और दो गुजराती भाषा की हस्तलिखित अर्थ- सहित प्रतियां थीं । उन्हीं के आधार पर इस की रचना की गई है । यदि किसी अर्थ या पाठ में सतत प्रयत्न करते हुए भी कोई अशुद्धि रह गई हो तो विद्वान् जन ‘समादधति सज्जना:' इस सूक्ति का अनुसरण करते हुए स्वयं उसको शुद्ध कर और मुझ को उसकी सूचना देकर चिरकाल के लिए आभारी बनावें ।
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गुरुचरणसेव जैन आचार्य आत्माराम
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