________________
उरेणं मंदं सिरेण तारं कंटेण वितारं तिविहं तिसमयरेयग-रइयं।
गुंजाऽवंक-कुहरोवगू रत्तं तिठाण-करणसुद्धं सकुहर-गुंजत वंस-तंती-तलताल-लय-गहसुसंपउत्तं महुरं समं सललियं मणोहरं मिउरिभियपयसंचारं सुरइ सुणइ वरचारुरूवं दिव्वं णट्टसज्जं गेयं पगीया वि होत्था।
८२. उनका संगीत किस प्रकार का था? __ (उनका संगीत) हृदयस्थल से निकलते हुए आदि में मन्द-मन्द मूर्धा में आने पर तार* उच्च स्वर वाला और कंठ स्थान में विशेष तार स्वर (उच्चतर ध्वनि) वाला हो गया था। * इस तरह त्रिस्थान-समुद्गत (तीन स्थानों से उठने वाला) वह संगीत त्रिसमय रेचक से * रचित होने पर त्रिविध रूप था। से संगीत की मधुर प्रतिध्वनि से समस्त प्रेक्षागृह मण्डप गूंजने लगता था। गेय राग-रागिनी
के अनुरूप था। त्रिस्थान त्रिकरण से शुद्ध था, अर्थात् उर, सिर एवं कण्ठ मे स्वर संचार 2 रूप क्रिया से शुद्ध था। गूंजती हुई बाँसुरी और वीणा के स्वरों से एक रूप मिला हुआ था।
एक-दूसरे की बजती हथेली (ताल) के स्वर का अनुसरण करता था। मुरज और कशिका आदि वाद्यों की झंकारों तथा नर्तकों के पादक्षेप-ठुमक से बराबर मेल खाता था। वीणा के लय के अनुरूप था। वीणा आदि वाद्य धुनों का अनुकरण करने वाला था। कोयल की कुहू-कुहू जैसा मधुर तथा सर्व प्रकार से सम, सललित, मनोहर, मृदु, रिभित पद-संचार से युक्त, श्रोताओं को रतिकर, सुख देने वाला ऐसा उन नर्तकों का नृत्ययुक्त विशिष्ट प्रकार का उत्तमोत्तम संगीत था। DESCRIPTION OF DANCE AND MUSIC
82. Of what type was that music ?
Their music, starting from the heart was at a very low pitch in the beginning, of high pitch when it reached the head and still higher when it arrived at the throat. Thus the music was arising
from three parts in the body. That music was in three steps and so * it was three-tier.
The entire hall meant for spectators started echoing with sweet music. The tone was in accordance with the song and the musical instruments. It was purified as it was arising from three places
namely heart, head and throat in respective order. It was in 9 harmony with the flute and the sitar (stringed instrument) being
*
सूर्याभ वर्णन
(83)
Description of Suryabh Deve
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org