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“हे गौतम ! वह पद्मवरवेदिका भूतकाल में कभी नहीं थी, ऐसा नहीं है; अभी वर्तमान 2 मे नहीं है, ऐसा भी नहीं है और भविष्य में नहीं रहेगी, ऐसा भी नहीं है; किन्तु पहले भी
थी, अब भी है और आगे भी रहेगी। इस प्रकार तीनों काल में रहने के कारण वह पद्मवरवेदिका ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है।"
158. (Gautum said) “Bhante ! Is that padmavarvedika permanent or is it not permanent ?"
(Bhagavan said) “O Gautam ! (From certain point of view) it is permanent and (from another point of view) it is not permanent."
(Gautam said) “Bhagavan Sir ! On what basis do you say that it is permanent from a certain point of view and not permanent from ganother point of view ?"
(Bhagavan replied) "O Gautam ! From (Dravya) basic point of view it is permanent. But from the point of view of its colour fragrance, taste and touch it is not permanent. So O Gautam ! It is
said that the said padmavarvedika is permanent and is also not a permanent.”
(Gautam asked) “Reverend Sir ! In respect of time period, for how long the padmavarvedika shall exist ?” ___ (Bhagavan replied) “O Gautam ! It is not true that padmavarvedika never existed in the past, that it does not exist at present and that it shall not exist in future. The fact is that it existed earlier, it exists now and it shall remain in future also. Since en
it exists in all the three time periods it is permanent always tal existing, undestroyable undiminishable." ।
१५९. सा णं पउमवरवेइया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ संपरिक्खित्ता।
से णं वणंसडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं उवयारियालेणसमे * परिक्खेवेणं, वणसंडवण्णओ भाणियव्वो जाव विहरंति।
१५९. वह पद्मवरवेदिका चारों ओर-सभी दिशा-विदिशाओं में-एक वनखंड से परिवेष्टित है।
उस वनखंड का चक्रवालविष्कम्भ (गोलाकार-चौडाई) कुछ कम दो योजन प्रमाण है तथा उपकारिकालयन की परिधि जितनी उसकी परिधि है। वहाँ देव-देवियाँ विचरण करती हैं, यहाँ तक वनखंड का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए।
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रायपसेणियसूत्र
(150)
Rar-paseniya Sutra
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