________________
Some of the gods exhibited scene of anxiety due to hasking in sun, some exhibited the feeling of heat-affectedness while some depicted experience of extreme heat still some exhibited all the three activities.
Some produced drik-drik sound, some produced thuk-thuk sound while some uttered dhak-dhak sound, some of the gods made sound of their names while some gods produced all the four types of sound.
(ङ) अप्पेगइया. देवा देवसन्निवायं करेंति, अप्पेगइया. देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया. देवुक्कलि करेंति, अप्पेगइया. देवा कहकहगं करेंति, अप्पेगइया देवा दुहदुहगं करेंति, अप्पेगइया. चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया. देवसन्निवायं - देवुज्जोयं - देवुक्कलियंदेवकहकहगं - देवदुहदुहगं चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया. उप्पलहत्थगया जाव सयसहस्स– पत्तहत्थगया, अप्पेगइया. कलसहत्थगया जाव धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठ जाव हिययासव्वतो समंता आहावंति परिधावति ।
(ङ) कितने ही देवों ने मिलकर टोलियाँ बनाईं, कितनेक ने देवोद्योत प्रकाश किया, कितने ही देवों ने रुक-रुककर बहने वाली वायु तरगों (हवा के झकोरे) का प्रदर्शन किया, कितने ही देवो ने कहकहे लगाये, कितने ही देवों ने 'दुह - दुह' शब्द किया, कितने ही देवों ने वस्त्रों को उछाला और कितने ही देवीं ने हाथो मे उत्पल यावत् शतपत्र, सहस्रपत्र कमलों को लेकर, कितने ही देवों ने हाथो में कलश यावत् ध्वजा लेकर हृष्ट-तुष्ट यावत् विकसित हृदय होते हुए इधर-उधर चारों ओर दौड़-दौड़ करने लगे ।
(e) Some of the gods joined into groups, some made divine light, some made highly blowing waves of the wind, some made chattering sound, some made 'duh - duh' sound, some gods moved their dress upwards, some of the gods held lotus flowers of different types namely utpal upto hundred leaved and thousand leaved lotus, some of the gods started running around holding pots and upto flags in their hand with a feeling of ecstatic pleasure.
मंगल - जयनाद
१९३. तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे सूरिया भरायहाणिवत्थव्वा देवा य देवीओ य महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति अभिसिंचित्ता पत्तेयं पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी
सूर्याभ वर्णन
Jain Education International
( 203 )
For Private
Personal Use Only
Description of Suryabh Dev
www.jainelibrary.org