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Shravasti town came to Koshthak garden and the place where em Keshi Kumar Shraman was seated.
After reaching there, he listened his spiritual discourse bowed to him and said
"Reverend Sir ! King Jitshatru has today allowed me to go to king Pradeshi with this great gift for him (king Pradeshi). So Sir! I am returning to Seyaviya town. Respected Sir! Seyaviya town is very pleasant. It is worth-seeing. It is grand. Sir ! Kindly favour us
with a visit to Seyaviya." __ २२५. तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तेणं सारहिणा एवं वुत्ते समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयमटुं णो आढाइ णो परिजाणाइ तुसिणीए संचिटुइ।
तए णं से चित्ते सारही केसी कुमारसमणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-एवं खुल अहं भंते ! जियसत्तणा रना पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं जाव विसज्जिए, तं चेव जाव समोसरह णं भंते ! तुब्भे सेयवियं नगरिं।
२२५. चित्त सारथी द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भी केशीकुमार श्रमण ने चित्त सारथी के कथन पर ध्यान नहीं दिया अर्थात् उसे स्वीकार नहीं किया। वे मौन रहे।
तब चित्त सारथी ने पुनः दूसरी और तीसरी बार भी निवेदन किया- 'हे भंते ! प्रदेशी राजा के लिए महाप्रयोजन-साधक उपहार देकर जितशत्रु राजा ने मुझे विदा कर दिया है। अतएव मैं लौट रहा हूँ। सेयविया नगरी रमणीय है, आप वहाँ पधारने की अवश्य कृपा करें।"
225. Keshi Kumar Shraman ignored this request of Chitta et Saarthi. He did not accept the request and remained silent.
Then Chitta Saarthi repeated his request second time and again the third time saying—“Respected Sir ! King Jitshatru has bid farewell to me with the high-valued gift for king Pradeshi. Therefore I am going back to Seyaviya. Seyaviya town is very good. Kindly do visit it." केशीकुमार श्रमण का उत्तर
२२६. तए णं केसी कुमारसमणे चित्तेण सारहिणा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे - चित्तं सारहिं एवं वयासी-चित्ता ! से जहानामए वणसंडे सिया-किण्हे किण्होभासे जाव
रायपसेणियसूत्र
(280)
Rai-paseniya Sutra
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