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कथनानुसार तो अत्यन्त पापकर्मों को उपार्जित करके मृत्यु प्राप्त कर किसी एक नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए हैं।
उन पितामह का मैं चहेता, बहुत प्रिय, मनोज्ञ, अतीव प्रिय, विश्वासपात्र, सभी कार्य करने में माना हुआ तथा कार्य करने के बाद भी अनुमत, रत्नकरंडक (आभूषणों की पेटी) के समान प्रिय, जीव के श्वासोच्छ्वास के समान अभिन्न, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाला, गूलर के फूल के समान, गूलर का नाम सुनना भी दुर्लभ है तो फिर उसके दर्शन की बात ही
क्या है ! ऐसा प्रिय पौत्र हूँ। इसलिए यदि मेरे पितामह आकर मुझसे इस प्रकार कह दें कि____ 'हे पौत्र ! मैं तुम्हारा पितामह था और इसी सेयविया नगरी में अधार्मिक था यावत् र प्रजाजनों से राज-कर लेकर भी यथोचित रूप में उनका पालन, रक्षण नहीं करता था। इस
कारण मैं बहुत घोर कलुषित पापकर्मों का संचय करके नरक में उत्पन्न हुआ हूँ। किन्तु हे नाती (पौत्र) ! तुम अधार्मिक नही होना, प्रजाजनों से कर लेकर उनके पालन, रक्षण में प्रमाद मत करना और न बहुत से मलिन पापकर्मों का उपार्जन ही करना।' ___ तो मैं आपके कथन पर श्रद्धा कर सकता हूँ, प्रतीति-(विश्वास) कर सकता हूँ एवं मेरी
रुचि का विषय बता सकता है कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है। जीव और शरीर * एकरूप नहीं हैं। लेकिन जब तक मेरे पितामह आकर मुझसे ऐसा नहीं कहते तब तक हे
आयुष्मन् श्रमण | मेरी यह धारणा-समीचीन है, सत्य है, दृढ है कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है।" ARGUMENT OF KING PRADESHI : EXAMPLE OF HIS GRANDFATHER
244. Then king Pradeshi told Keshi Kumar Shraman
"Reverend Sir ! In case this is the belief of Shraman Nirgranths that soul is different from the body and that soul and body are not the same entity (substance), please clarify the following-My grandfather was a ruler of Seyaviya town in this Jambu Dveep. He was irreligious upto he was receiving taxes from the public but was not properly looking after them and was not providing suitable security. According to your logic, he collected extremely sinful fruit bearing karmas and as such must have taken birth as a hellish being in one of the hells.
I was the most loveable, liked, trustworthy grandson expert in performing his duties, in executing his orders, humble, devoted and one with him like the life-breath. I was a cause of ecstatic pleasure et रायपसेणियसूत्र
Rai-paseniya Sutra *
k se.ke.ske.ke.sksksksks.ske.sks.ske.sksksksis.sis.
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