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2 है। दूसरी परस्परोदीरित वेदना-नारक जीव आपसी वैर-विरोध के कारण सॉप-नेवले की तरह
एक-दूसरे के जन्मजात शत्रु होते है। एक-दूसरे को देखते ही लडते है, भिडते है, उसे काटते है। अगर * कोई नारक उनसे छूटकर जाना चाहे तो वे जबर्दस्ती उसे पकडकर उसके साथ युद्ध करने, मारकाट * करने लगते है। जैसे दो डाकू या घोर शत्रु एक-दूसरे को भागने नही देते, उसे पकड-पकडकर मारते है। इस कारण कोई नारक वहाँ से छूटकर निकलना चाहने पर भी नहीं छूट सकता।
(२) दूसरा कारण है-कोई नारक, अपने-अपने पुराने रिश्तेदारो से मिलने के लिए नरक से जाना चाहे तो नरकपाल-जिन्हे परमाधार्मिक देव कहते है, वे उसे जाने नही देते। उसे पकडकर कुभी मे पकाते है, शरीर के टुकडे-टुकडे कर डालते हैं। परमाधार्मिको द्वारा दी जाने वाली वेदना का लोमहर्षक वर्णन सूत्रकृतांग के 'नरक विभक्ति' अध्ययन तथा उत्तराध्ययन के 'मृगापुत्रीय' १९वे अध्ययन मे पढने से पता चलता है, नरकपाल नारक जीव को वहाँ से भागने नही देते, पकड-पकडकर उसे यातना-यंत्रणाएँ देते है।
(३) तीसरा कारण है-उसका नरक सम्बन्धी वेदनीयकर्म। जितने काल तक नरक सम्बन्धी वेदना भोगने के कर्म बँधे है उन कर्मो को भोगे बिना वह वहाँ से निकल नही सकता जैसे मकडी जाले से नही निकल सकती।
(४) चौथा कारण है-नरक की आयुस्थिति या कालस्थिति। प्रज्ञापनासूत्र के स्थिति पद तथा a अनुयोगद्वारसूत्र के अनुसार नारक जीवो की कम से कम जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट
स्थिति (सातवी नरक की) तेतीस सागरोपम की है और यह स्थिति अपरिवर्तनीय होती है। आयुष्यकर्म क्षय होने से पहले उस शरीर को कोई छोड नही सकता।
इसलिए केशीकुमार श्रमण कहते है कि नारक जीव मनुष्यलोक के अपने मित्र-सम्बन्धियो से मिलने * की इच्छा रखते हुए भी वहाँ से छूटकर नही आ सकते। स्थानागसूत्र के प्रथम स्थान में भी ये चार कारण
बताये गये है।
इस सूत्र में प्रदेशी राजा अपनी दादी का उदाहरण देता है कि 'मेरी दादी बहुत ही धार्मिक * आचार-विचार वाली थी। आपके सिद्धान्तानुसार वह अवश्य ही स्वर्ग मे गई होगी। यह माना जाये कि
नरक मे जीव परतत्र होता है, इसलिए वह आना चाहते हुए भी नही आ सकता, परन्तु स्वर्ग के देवता तो स्वतत्र और स्वाधीन है। वे तो आ सकती है, फिर मेरी दादी क्यो नही आई?'
इस प्रश्न का समाधान देते हुए केशीकुमार श्रमण ने पहले देव-कुलिका (मन्दिर) मे जाते समय शौचालय में प्रवेश का उदाहरण दिया है और यह बताया है कि स्वर्ग के सुगधमय-दिव्य वातावरण के
समक्ष यह मनुष्यलोक तो एक शौचालय से भी अधिक दुर्गधमय है। यहाँ पर भी देवताओ के मनुष्यलोक * मे नही आने के चार कारण बताये है
(१) पहला कारण है, वहाँ उत्पन्न होने वाले देवता का स्वर्गीय काम-सुखो मे आसक्त हो जाना। वे वहाँ के सुखों मे इतने लीन हो जाते है कि मनुष्यलोक मे आने का मन तो होता है, परन्तु सुखो की के आसक्ति नही छोड पाने के कारण वहाँ से निकल नही सकते।
केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
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Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi
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