Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 415
________________ (ड) उस पुरुष की बात सुनकर उन मनुष्यो मे कोई एक पुरुष, जो छेक-अवसर को जानने वाला, दक्ष - चतुर, कुशलता से अपने इच्छित अर्थ को प्राप्त करने वाला, बुद्धिमान् और उपदेश लब्ध-गुरुजनों से ज्ञान प्राप्त किया हुआ था, उस पुरुष ने अपने दूसरे साथी लोगों से कहा-‘“हे देवानुप्रियो ! आप जाओ और स्नान, बलिकर्म आदि करके शीघ्र आ ओ। तब तक मै आप लोगो के लिए भोजन तैयार करता हूँ ।" ऐसा कहकर उसने अपनी कमर कसी और कुल्हाडी लेकर सर (बाण जैसा नुकीला) बनाया, सर से अरणि-काष्ठ को रगडकर आग की चिनगारी प्रगट की। फिर उसे धौंककर सुलगाया और अपने साथियो के लिए भोजन बनाकर तैयार किया । (e) Then one of them who could realise the situation ( Chhek), who was clever, well-versed in finding the result and intelligent (Daksh), who had received proper knowledge from the teachers (Upadest Labdh), told his other companions – “O the blessed ! You go and take your bath, adopt auspicious symbols and come soon. In the mean time, I shall prepare food for you." He then wrapped his waist with a cloth, and with the axe prepared a sharp-pointed stick (like an arrow). He then rubbed the Arani wood with the sharppointed stick. The fire appeared. He blew it (with his mouth) and then with the fire, he prepared food for his companions. (च) तए णं ते पुरिसा ण्हाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति । तए णं से पुरिसे तेसिं पुरिसाणं सुहासणवरगयाणं तं विउलं असणं-पाणं - खाइमं - साइमं उवणेइ । तए णं ते पुरिसा तं विउलं असणं ४ (पाणं - खाइमं - साइमं ) आसाएमाणा वीसाएमाणा जाव विहरंति । जिमियभुत्तुतरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं पुरिसं एवं वयासी - अहो ! णं तुमं देवापिया ! जड्डे - मूढे - अपंडिए - णिचिण्णाणे - अणुवएसलद्धे, जे णं तुमं इच्छसि कटुंसि दुहाफालियंसि वा जोतिं पासित्तए । वाले से एएणणं पएसी ! एवं बुच्चइ मूढतराए णं तुमं पएसी ! ताओ तुच्छतराओ । (च) इतने में वे स्नान आदि करने गये सभी साथी स्नान करके वापस उस भोजन बनाने पुरुष के पास आ गये। सुखपूर्वक अपने - अपने आसन पर बैठे। उन लोगों के सामने उस पुरुष ने विपुल अशन, पान आदि चार प्रकार का भोजन परोसा । चारों प्रकार के भोजन का स्वाद लेते हुए खाया। भोजन के बाद आचमन - कुल्ला आदि करके स्वच्छ, शुद्ध होकर रायपसेणियसूत्र Rai-paseniya Sutra Jain Education International (362) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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