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तए णं सूरियकंते कुमारे सूरियकताए देवीए एवं वुत्ते समाणे सूरियकंताए देवीए । एयमटू णो आढाइ नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। र (ख) “हे पुत्र ! जब से प्रदेशी राजा ने श्रमणोपासकधर्म स्वीकार कर लिया है, तभी से
राज्य यावत् अन्तःपुर, जनपद और मनुष्य-जीवन सम्बन्धी कामभोगों की ओर से उदासीन और विरक्त रहने लगे हैं। इसलिए पुत्र ! तुम्हें यही श्रेयस्कर है कि शस्त्र-प्रयोग आदि किसी न किसी उपाय से प्रदेशी राजा को मारकर स्वय राज्यलक्ष्मी का भोग करो एवं प्रजा का पालन करते हुए अपना जीवन बिताओ।"
सूर्यकान्ता देवी के इस विचार को सुनकर सूर्यकान्तकुमार ने उसका बिलकुल आदर नहीं किया, उस पर ध्यान नहीं दिया किन्तु शान्त और मौन ही रहा।
(b) She said—“O Son ! Since the time king Pradeshi has become a Shramanopasak and accepted vows (of householder), he is indifferent and non-attached towards the affairs of the state upto family and the people. He is ignoring even sensual pleasures and enjoyments. So, O Son ! It is in your benefit that you kill king
Pradeshi with some weapon or any other thing and enjoy kingship Mit yourself looking after the people.”
Hearing these thoughts from his mother Suryakanta, he did not pay any attention to it. He did not support it and remained silent.
(ग) तए णं तीसे सूरिकताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पन्नित्था-मा णं al सूरियकंते कुमारे पएसिस्स रनो इमं रहस्सभेयं करिस्सइ त्ति कटु पएसिस्स रण्णो
छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य अंतराणि य पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ।
(ग) तब सूर्यकान्ता रानी के हृदय में इस प्रकार का और विकल्प (आशंका) उत्पन्न हुआ कि ‘कहीं ऐसा न हो कि सूर्यकान्तकुमार प्रदेशी राजा के सामने मेरे इस गुप्त रहस्य को प्रकट कर दे। ऐसा सोचकर सूर्यकान्ता रानी प्रदेशी राजा को मारने के लिए उसके दोष
(असावधानी) रूप छिद्रो को, आन्तरिक मर्मो को, रहस्यो (व्यक्तिगत आचार-विचार) को, * एकान्त निर्जन स्थानों को और घात करने के लिए अनुकूल अवसर रूप अन्तरों को जानने * की ताक में रहने लगी।
(c) Then queen Suryakanta thought to herself as a doubt arose in her mind that 'Suryakant may not disclose her secret plan to - केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(401) Keshi Kumar Shraman and King Pradesh *
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