Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 480
________________ H बनाने की कला, (१७) नया पानी उत्पन्न करना अथवा औषधि आदि के संयोग-सस्कार से पानी को शुद्ध करना, स्वादिष्ट पेय पदार्थ बनाना, (१८) नवीन वस्त्र बनाना, वस्त्रों को रंगना, सींना और पहनना, (१९) विलेपन विधि-शरीर पर लेप करने की विधि, (२०) शय्या बनाना और शयन करने की विधि जानना। (२१) मात्रिक छन्द बनाना और पहचानना, (२२) पहेलियाँ बनाना और बुझाना, (२३) मागधिक-मागधी भाषा मे गाथा (काव्य) आदि बनाना, (२४) निद्रायिका-नीद में सुलाने की कला, (२५) प्राकृत भाषा में गाथा (काव्य) आदि बनाना, (२६) गीति-छंद बनाना, (२७) श्लोक (संस्कृत भाषा में छंद) बनाना। (२८) हिरण्ययुक्ति-चाँदी बनाना और चॉदी शुद्ध करना, (२९) स्वर्णयुक्ति स्वर्ण बनाना और स्वर्ण शुद्ध करना, (३०) आभूषण-अलंकार बनाना, (३१) तरुणी प्रतिकर्म-स्त्रियों का श्रृंगार-प्रसाधन करना, (३२) स्त्रियो के शुभाशुभ लक्षणों को जानना, (३३) पुरुष के लक्षण जानना, (३४) अश्व के लक्षण जानना, (३५) हाथी के लक्षण जानना, (३६) मुर्गों के लक्षण जानना, (३७) छत्र-लक्षण जानना, (३८) चक्र-लक्षण जानना, (३९) दड-लक्षण जानना, (४०) असि-(तलवार) लक्षण जानना, (४१) मणि-लक्षण जानना, (४२) काकणी-(रत्न-विशेष) लक्षण जानना। (४३) वास्तुविद्या-गृह, गृहभूमि के गुण-दोषों को जानना, (४४) नया नगर बसाने आदि की कला, (४५) स्कन्धावार--सेना के पड़ाव की रचना करने की कला, (४६) मापने-नापने-तोलने के साधनों को जानना, (४७) प्रतिचार-शत्रु सेना के सामने अपनी सेना को चलाना, (४८) व्यूह-युद्ध मे शत्रु सेना के समक्ष अपनी सेना का मोर्चा बनाना, (४९) चक्रव्यूह-चक्र के आकार की मोर्चाबन्दी करना, (५०) गरुडव्यूह-गरुड के आकार की व्यूह रचना करना, (५१) शकटव्यूह रचना, गाडी के आकार की युद्ध रचना, (५२) सामान्य युद्ध करना, (५३) नियुद्ध-मल्लयुद्ध करने की कला, कुश्ती लडना, (५४) युद्ध-युद्ध-शत्रु सेना की स्थिति को जानकर युद्ध-विधि को बदलने की कला अथवा घमासान युद्ध करना, (५५) अट्ठि (यष्टि-लाठी या अस्थि-हड्डी) से युद्ध करना, (५६) मुष्ठियुद्ध करना, (५७) बाहुयुद्ध करना, (५८) लतायुद्ध करना, (५९) इष्वस्त्रशस्त्र-बाण बनाने की कला अथवा नागबाण आदि विशिष्ट बाणों के प्रक्षेपण की विधि, (६०) तलवार चलाने की कला, (६१) धनुर्वेद-धनुष-बाण सम्बन्धी कौशल। (६२) चाँदी का पाक बनाना (औषधि के रूप में), (६३) सोने का पाक बनाना, (६४) मणियो के निर्माण की कला अथवा मणियों की भस्म आदि औषधि बनाना, * * * र दृढप्रतिज्ञकुमार (415) Dridh Pratyna Kumar 4 NEPSMEMENT शाशशुशुभ AdSag * * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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