Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 494
________________ आगमों का अनध्यायकाल (स्व. आचार्यप्रवर श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा सम्पादित नन्दीसूत्र से उद्धृत) -स्थानांगसत्र, स्थान १० स्वाध्याय के लिए आगमो मे जो समय बताया गया है, उसी समय शास्त्रो का स्वाध्याय करना चाहिए। अनध्यायकाल मे स्वाध्याय वर्जित है। ___ मनुस्मृति आदि स्मृतियो मे भी अनध्यायकाल का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। वैदिक लोग भी वेद के अनध्यायो का उल्लेख करते है। इसी प्रकार अन्य आर्ष ग्रन्थो का भी अनध्याय माना जाता है। जैनागम भी सर्वज्ञोक्त, देवाधिष्ठित तथा स्वर-विद्या सयुक्त होने के कारण, इनका भी आगमो मे ॐ अनध्यायकाल वर्णित किया गया है। जैसे दसविहे अंतलिक्खिए असज्झाए पण्णत्ते, तं जहा-उक्कावाते, दिसिदाघे, गज्जिते, विज्जुते, निग्याते, जुवते, जक्खालित्ते, धूमिता, महिता, रयउग्घाते। ____दसविहे ओरालिए असज्झाए, तं जहा–अट्ठी, मंसं, सोणिते, असुतिसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराते, ॐ सूरोवराते, पडणे, रायबुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे। स नो कप्पति निरगंथाण वा, निगंथीण वा चउहिं महापाडिवएहिं सज्झायं करित्तए, तं जहाआसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तिअपाडिवाए सुगिम्हपाडिवए। नो कप्पइ निगंथाण वा निग्गंथीण वा, चउहि संझाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा-पढिमाते, पच्छिमाते, मज्झण्हे, अड्ढरत्ते। कप्पइ निगंथाणं वा निग्गंथीण वा, चाउक्कालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा-पुवण्हे अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे। -स्थानांगसूत्र, स्थान ४, उद्देशक २ स्थानागसूत्र के अनुसार, दस आकाश से सम्बन्धित, दस औदारिक शरीर से सम्बन्धित, चार महाप्रतिपदा, चार महाप्रतिपदा की पूर्णिमा और चार सन्ध्या। इस प्रकार बत्तीस अनध्यायकाल माने गए है, जिनका सक्षेप मे निम्न प्रकार से वर्णन है। जैसेआकाश सम्बन्धी दस अनध्याय ____१. उल्कापात-तारापतन-यदि महत् तारापतन हुआ है तो एक प्रहर पर्यन्त शास्त्र-स्वाध्याय नही करना चाहिए। २. दिग्दाह-जब तक दिशा रक्तवर्ण की हो अर्थात् ऐसा मालूम पडे कि दिशा मे आग-सी लगी है, तब भी स्वाध्याय नही करना चाहिए। ३. गर्जित-बादलो के गर्जन पर एक प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय न करे। ४. विद्युत्-बिजली चमकने पर एक प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय न करे। * परिशिष्ट (429) Appendix * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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