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suchlike reside. In other words he shall know Aagati-the earlier state from which soul has taken re-birth, Gati-the later state
which this Jiva shall attain after completing the present life-span, het by the duration, the descending (from heaven-the godly state), the
birth of angelic beings and hellish beings. He shall also know the 9 thoughts, activities, the thought process, the activities already
performed, the things of enjoyment available, the activities performed in public and also those performed secretly by the livingbeings. He shall also see and know the thought activities of all types that the embodied souls engage in
(ङ) तए णं दढपइन्ने केवली एयासवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता बहूई भत्ताई पच्चक्खाइस्सइ,
बहूई भत्ताइं अणसणाए छेइस्सइ। ॐ जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे केसलोच-बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतवणं अणुवहाणगं र भूमिसेज्जाओ फलहसेजाओ परघरपवेसो लद्धावलद्धाई माणावमाणाइं परेसिं हीलणाओ
निंदणाओ खिंसणाओ तजणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा गामकंटगा अहियासिजंति। तमटुं आराहेइ, चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहि सिज्झिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति।
(ङ) तत्पश्चात् वे दृढप्रतिज्ञ केवली इस प्रकार विहारचर्या से विचरण करते हुए और • अनेक वर्षों तक केवलि-पर्याय का पालन कर, अपने आयु के अन्त को जानकर अनेक
भक्तों-अनेक दिनों के भोजनों का प्रत्याख्यान व त्याग करेगे और अनशन द्वारा बहुत से 9 भोजनों का छेदन करेंगे अर्थात् बहुत समय तक आहार-पान का त्यागकर शरीर त्याग * करेंगे।
जिस साध्य की सिद्धि के लिए नग्नभाव (मुनित्व), केशलोच, ब्रह्मचर्य-धारण, स्नान का * त्याग, दतधावन का त्याग, पादुकाओं का त्याग, भूमि पर शयन करना, काष्ठासन पर सोना, * भिक्षार्थ परगृह-प्रवेश, लाभ-अलाभ मे सम रहना, मान-अपमान सहना, दूसरों के द्वारा * की जाने वाली हीलना (तिरस्कार), निन्दा, खिंसना (अवर्णवाद), तर्जना (धमकी), ताडना, * गर्दा (घृणा) एवं अनुकूल-प्रतिकूल अनेक प्रकार के बाईस परीषह, उपसर्ग तथा लोकापवाद
(गाली-गलौज) आदि सहन किये जाते हैं, उस परम साध्य-मोक्ष की साधना करके वे
रायपसेणियसूत्र
(426)
Rar-paseniya Sutra
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