Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 490
________________ सुचरियतवफलणिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अणंते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे । निरावरणे णिव्वाघाए केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति। (ग) इसके साथ ही वह अनुत्तर सर्वश्रेष्ठ ऐसे तपोमार्ग मे आत्मा को रमायेगा, जिससे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अप्रतिबद्ध विहार, आर्जव, मार्दव, लाघव, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति (निर्लोभता) सर्व सयम एवं निर्वाण की प्राप्ति रूप महाफल मिलता है। अन्त में वह भगवान 9 (दृढप्रतिज्ञ) अनन्त, अनुत्तर, सकल, परिपूर्ण, निरावरण, निर्व्याघात, अप्रतिहत, सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त करेगा। PERFECT KNOWLEDGE AND SALVATION (c) Simultaneously he shall engage himself in austerities of the highest order that result in exquisite knowledge, perception, conduct, unrestricted movement, straight forwardness, humility, renunciation, forgiveness, proper control, non-attachment, complete restraint and salvation. In the end Dridh Pratijna shall attain infinite, unique, complete, perfect unclouded, unrestricted, indiminishable knowledge (Keval jnan) and perception (Keval darshan). (घ) तए णं भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियायं जाणहिति तं.-आगतिं गतिं ठितिं चवणं उववायं तक्कं कडं मणोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्सभागी तं तं मणवयकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सबजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ। ॐ (घ) तब वे दृढप्रतिज्ञ भगवान अर्हत्, जिन, केवली हो जायेंगे। जिसमे देव, मनुष्य तथा असुर आदि रहते है ऐसे लोक की समस्त पर्यायो को वे जानेगे। अर्थात् वे प्राणिमात्र की आगति-एक गति से दूसरी गति में आगमन को, गति-वर्तमान गति को छोडकर अन्य गति मे गमन को, स्थिति, च्यवन, उपपात (देव या नारक जीवों की उत्पत्ति-जन्म), तर्क (विचार), क्रिया, मनोभावों, क्षयप्राप्त (भोगे जा चुके), प्रतिसेवित (भोग-परिभोग की वस्तुओ), आविष्कर्म (प्रकट कार्यों), रहःकर्म (एकान्त मे किये गुप्त कार्यो) आदि, प्रगट और C) गुप्त रूप से होने वाले मन, वचन और काययोग मे विद्यमान लोकवर्ती सभी जीवों के सर्वभावों को जानते-देखते हुए विचरण करेगे। (d) Then Dridh Pratijna shall become omniscient. He shall know all the modes of the universe where gods, men, demon-gods and दृढप्रतिज्ञकुमार (425) Dridh Pratyna Kumar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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