Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 479
________________ EARLY EDUCATION OF DRIDH PRATIJNA 282. (a) When the child Dridh Pratijna shall be a little more than eight years of age, his parents on an auspicious day at an auspicious time shall decorate him with auspicious signs and ornaments, and bring him before an expert teacher exhibiting their respect for the teacher, in a gathering. Then the teacher shall teach mathematics to Dridh Pratijna. He shall teach him the written scripts, the language of birds and seventy two arts of men in verses, their meaning and according to the relevant elaboration. He shall also help him in practising them. (ख) तं जहा - लेहं गणियं रूवं नट्टं गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं जूयं जणवयं पासगं अट्ठावयं पारेकव्वं दगमट्टियं अन्नविहिं पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं यणविहिं । ( २० ) अजं पहेलियं माहियं णिद्दाइयं गाहं गीइयं सिलोगं । (२७) हिरण्णजुत्तिं सुवणजुत्तिं आभरणविहिं तरुणीपडिकम्मं इत्थिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं चक्कलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं । (४२) वत्थुविज्जं णगरमाणं खंधवारं माणवारं पडिचारं वूहं चक्कवूहं गरुलवूहं सगडवहं जुद्धं नियुद्धं जुजुद्धं अजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं ईसत्थं छरूप्पवायं धणुवेयं । (६१) हिरण्णपागं सुवण्णपागं मणिपागं धाउपागं सुत्तखेड्डं वट्टखेड्ड णालियाखेडुडं । (६८) पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्जं सज्जीवनिज्जीवं सउणरूयं ( ७२ ) इति । (ख) उन बहत्तर कलाओ के नाम इस प्रकार हैं (१) लेखन, (२) गणित, (३) रूप सजाने की कला, (४) नाट्य (अभिनय) अथवा नृत्य करने की कला, (५) सगीत, (६) वाद्य बजाना, (७) स्वर जानना, (८) वाद्य सुधारना अथवा ढोल आदि बजाने की कला, (९) संगीत मे गीत और वाद्यो के सुर-ताल की समानता को जानने की कला, (१०) द्यूत - जुआ खेलना, (११) लोगों के साथ वार्त्तालाप और वाद-विवाद करना, (१२) पासो से खेलना, (१३) चौपड खेलना, (१४) तत्काल काव्य - कविता की रचना करना, (१५) जल और मिट्टी को मिलाकर वस्तु निर्माण करना अथवा जल और मिट्टी के गुणों की परीक्षा करना, (१६) अन्न उत्पन्न करने अथवा भोजन रायपसेणियसूत्र Jain Education International (414) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org

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