Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 463
________________ hea सत्यप्पओएण वा अग्गिप्पओएण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु | एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी २७६. (क ) [ राजा प्रदेशी को राज्य, परिवार और अपनी रानी आदि के प्रति उदासीन अनुरागरहित देखकर ] सूर्यकान्ता रानी के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि 'जब से राजा प्रदेशी श्रमणोपासक हुआ है, उसी दिन से राज्य, राष्ट्र यावत् अन्तपुर (रानी, पुत्र, परिवार आदि) जनपद और मुझसे विमुख हो गया है, विरक्त रहने लगा है। अतः मुझे यही उचित है कि अब किसी शस्त्र - प्रयोग, अग्नि-प्रयोग, मंत्र - प्रयोग अथवा विष - प्रयोग द्वारा प्रदेशी राजा को मारकर सूर्यकान्तकुमार को राज्य पर आसीन करके अर्थात् राजा बनाकर स्वयं राज्यलक्ष्मी का भोग करती हुई, प्रजा का पालन करती हुई आनन्दपूर्वक रहूँ।' ऐसा उसने विचार किया । विचार करके सूर्यकान्तकुमार को बुलाया और बुलाकर अपनी मनोभावना बताई CONSPIRACY OF QUEEN SURYAKANTA 276. (a) [Finding that king Pradeshi is non-attached towards administrative matters, the family, the queen and others] Queen Suryakana thought of a plan. She thought-'Since the time king Pradeshi has become a Shramanopasak, he has started ignoring the state, the administration and the family – the queen, the son, the people and me (queen Suryakanta). It is therefore, proper for me to kill him with a weapon, with fire, with some ominous mantra or with poison and to declare her son Suryakant as the king. Then she shall be able to enjoy regal pleasures and lead an ecstatic happy life properly looking after the people.' After thinking in this manner, she called her son Suryakant and disclosed her plan to him (ख) जप्पभिदं च णं पएसी राया समणोवासए जाये तप्पभिदं च णं रज्जं च जाव अंतेउरं च णं जणवयं च माणुस्सए य कामभोगे अणाढायमाणए विहरइ, तं सेयं खलु तव पुत्ता ! एसिं रायं केणइ सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए । रायपसेणियसूत्र Jain Education International ( 400 ) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org

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