Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 465
________________ king Pradeshi.' With these intentions, queen Suryakanta started noticing carefully the mistakes of king Pradeshi, his careless activity any of his secrets, his solitary places (of stay) and the opportunity in order to kill him. असणं २७७. तए णं सूरियकंता देवी अन्नया कयाइ पएसिस्स रण्णो अंतरं जाणइ, जाव खाइमं सव्वं वत्थ - गंध - मल्लालंकारं विसप्पजोगं पउंजइ । पएसिस्स रण्णो ण्हायस्स जाव पायच्छित्तस्स सुहासणवरगयस्स तं विससंजुत्तं असणं वत्थं जाव अलंकारं निसिरेइ, घातइ । तणं तस्स एसिस्स रणो तं विससंजुत्तं असणं आहारेमाणस्स सरीरगंमि वेयणा पाउब्भूया उज्जला विपुला पगाढा कक्कसा कडुया फरुसा निट्टुरा चंडा तिव्वा दुक्खा दुग्गा दुरहियासा पित्तजरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिया वि विहर । २७७. किसी एक दिन योजना के अनुकूल अवसर मिलने पर सूर्यकान्ता रानी ने प्रदेशी राजा को मारने के लिए अशन, पान आदि भोजन में तथा शरीर पर धारण करने योग्य सभी वस्त्रों में, सूँघने योग्य सुगंधित वस्तुओं मे, पुष्पमालाओं और आभूषणों में विष डालकर उन्हें जहरीला कर दिया। जब वह प्रदेशी राजा स्नान यावत् मंगल प्रायश्चित्त करके भोजन करने के लिए श्रेष्ठ आसन पर बैठा तब वह विष मिश्रित घातक अशन आदि रूप आहार परोसा तथा विषमय वस्त्र पहनने को दिये तथा विषमय अलंकार पहनने को दिये जिनसे उसने अपने को अलकृत कर लिया। वह विष मिश्रित आहार खाने से प्रदेशी राजा के शरीर में तत्काल उत्कट, भयंकर, प्रचुर, प्रगाढ (गहरी भीतर तक ), कर्कश ( सहने में कठिन), कटुक, परुष - निष्ठुर, रौद्र, दुःखद, विकट और दुस्सह वेदना उत्पन्न हुई । विषम पित्तज्वर से सारे शरीर मे जलन और तीव्र दाह उत्पन्न हो गई । 277. One day, according to her plans, finding suitable occasion, queen Suryakanta added poison in food and liquids in order to kill king Pradeshi. She further poisoned all the clothes, the articles meant for his fragrance, the flower garlands and the ornaments meant for his use. When king Pradeshi, after taking his bath and wearing auspicious symbols took his royal seat, she served him the poisoned रायसेणियसूत्र Rai-paseniya Sutra Jain Education International (402) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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