Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 469
________________ और उस पर आसीन हुआ । आसीन होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके पर्यंकासन (पद्मासन) से बैठा, फिर दोनो हाथ जोड आवर्त्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार बोला " अरिहतों यावत् सिद्धगति को प्राप्त भगवन्तों को नमस्कार हो । मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक केशीकुमार श्रमण को नमस्कार हो । यहाँ रहा हुआ मै वहाँ विराजमान भगवान की वन्दना करता हूँ। वहाँ पर विराजमान वे भगवान यहाँ रहकर वन्दना करते हुए मुझे देखें । पहले भी मैने केशीकुमार श्रमण के समक्ष स्थूल प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किया है। अब इस समय भी मैं उन्हीं भगवन्तों की साक्षी से ( यावज्जीवन के लिए) सम्पूर्ण प्राणातिपात यावत् समस्त परिग्रह, क्रोध यावत् मिथ्यादर्शनशल्य रूप अठारह पापस्थानो का प्रत्याख्यान करता हूँ । समस्त अकरणीय पाप कार्यों एवं (अशुभ) मन-वचन-काय योग का प्रत्याख्यान करता हूँ और जीवन- पर्यंत के लिए सभी अशन, पान आदि चारों प्रकार के आहार का भी त्याग करता हूँ । यद्यपि आज तक मुझे यह शरीर प्रिय रहा है, मैंने यह ध्यान रखा है कि इसमे कोई रोग आदि उत्पन्न न हों परन्तु अब अन्तिम श्वासोच्छ्वास (मृत्यु) तक के लिए इस शरीर का भी परित्याग करता हूँ ।" इस प्रकार के निश्चय के साथ पुनः आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधिपूर्वक स्थित हुआ। कुछ समय पश्चात् मरण प्राप्त होने पर काल करके सौधर्मकल्प के सूर्याभ विमान की उपपात सभा मे सूर्याभदेव के रूप में उत्पन्न हुआ । इत्यादि पूर्व में किया गया समस्त वर्णन यहाॅ जानना चाहिए। सूर्याभदेव का यह पूर्वभव भगवान महावीर ने गौतम स्वामी को बताया । SAMLEKHANA AND DEATH OF KING PRADESHI 278. King Pradeshi soon understood the foul play of queen Suryakanta. But even then he did not have in his mind even the slightest anger towards her. (Knowing that his death is very near) he came to the Paushadhshala (place for observing Paushadh and fasting) in an extremely quiet manner. He cleaned it carefully. He also properly inspected the place for call of nature. He then spread the straw bedding and sat on it facing east with legs crossed. He then folded his hands, placed them near the forehead and then moved them in a circle and said रायपसेणियसूत्र Jain Education International (404) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org

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