Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 418
________________ अपने पहले साथी से बोले - "हे देवानुप्रिय । तुम जड - अनभिज्ञ, मूढ, प्रतिभारहित, निपुणतारहित और अशिक्षित हो, जो तुमने काष्ठ के टुकड़ों में आग ढूँढने का प्रयास किया।" हे प्रदेशी ' तुम्हारी भी इस प्रकार की प्रवृत्ति देखकर मैंने यह कहा - "तुम तुच्छ कठियारे से भी अधिक मूढ़ प्रतीत होते हो कि शरीर के टुकडे टुकडे करके जीव को देखना चाहते हो ।" (f) In the mean time, all the persons came to him after taking bath. They took their seats. That person served cooked food and others in plenty. They took the four types of food-namely cooked food, liquids, fragrant types and sweets to their fill. Thereafter they cleaned their mouth with water and then told their first companions—“O, you are fool, ignorant, unintelligent, unskilled and uneducated that you tried to find fire in pieces of wood." O Pradeshi ! After seeing your behaviour similar to that person, I stated that "You appear to be more foolish than that wood-cutter. You want to see soul by cutting body into pieces." विवेचन - केशीकुमार श्रमण ने अरणि काष्ठ का उदाहरण देकर बताया है- अरणि मे अग्नि विद्यमान है, परन्तु उसे पाने के लिए उसके टुकडे टुकडे करने की जरूरत नही होती, जरूरत है मन्थन की । इसी पक्ष पर दर्शनशास्त्र मे अन्य उदाहरण भी दिये जाते है। जैसे दूध में घी रहता है, तिलो मे तेल रहता है, माचिस की नोक पर अग्नि रहती है, बिजली के तारो मे विद्युत् प्रवाह तरगित रहता है किन्तु कभी दिखाई नही देता। उसी प्रकार शरीर मे चेतना या आत्मा विद्यमान है। अरणि से अग्निभिन्न है, दूध घृत भिन्न है, तिल से तेल भिन्न है, माचिस से अग्नि अलग है, तारो से या पानी से विद्युत् भिन्न है । किन्तु उसे पाने के लिए मन्थन की, सघर्षण की व सयोजन की जरूरत है। उसी प्रकार शरीर में विद्यमान चैतन्य के दर्शन करने के लिए चिन्तन, ध्यान, मनन, तप आदि क्रियाओ की जरूरत है। जिसे इन क्रियाओ की विधि का ज्ञान प्राप्त है वही देह मे स्थित चैतन्य सत्ता का अनुभव-दर्शन कर सकता है। मूर्ख कठियारे की तरह उसके टुकडे करने से आत्मा का दर्शन नही हो सकता । केशीकुमार श्रमण ने इस दृष्टान्त मे राजा प्रदेशी के पिछले सभी प्रश्नो का उत्तर दे दिया है कि तुम शरीर के टुकड़े करके या उसे कुभी आदि मे बन्द करके जीव को, चैतन्य को देखना चाहते हो यह तुम्हारी मूर्खता या अज्ञान है। शरीर मे स्थित चैतन्य को देखा नहीं जा सकता, अनुभव किया जा सकता है और सकेत भी किया है कि उसके लिए तप, ध्यान, चिन्तन आदि विधियो का आश्रय लो। तभी उस चैतन्य सत्ता का दर्शन हो सकेगा। Elaboration By the example of Arani wood, Keshi Kumar Shraman clarified that Aranı (fire-producing wooden stick) has fire capability, but शीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा Jain Education International (363) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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