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। मा णं तुमं पएसी ! पुट्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवजासि, जहा से वणसंडे इ वा, णट्टसाला इ वा इक्खुवाडए इ वा, खलवाडए इ वा।
कहं णं भंते !
२७२. (क) प्रदेशी राजा को सेयविया नगरी की ओर चलने के लिए उद्यत देखकर केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा को सबोधित कर कहा__"राजन् ! जिस प्रकार वनखण्ड, नाट्यशाला, इक्षुवाड (गन्ने का खेत) अथवा खलवाड र (खलिहान) पूर्व में रमणीय होकर पश्चात् अरमणीय (अशोभनीय) हो जाते हैं, उस प्रकार
तुम पहले रमणीय (लोकप्रिय) होकर बाद मे अरमणीय मत हो जाना।" " प्रदेशी ने पूछा- “भदन्त ! वनखंड आदि पूर्व मे रमणीय (मनोरम, सुन्दर) होकर बाद " में अरमणीय कैसे हो जाते है ? आपका क्या अभिप्राय है? WARNING OF KESHI KUMAR SHRAMAN
272. (a) Finding that king Pradeshi is getting ready to go back to Seyaviya town, Keshi Kumar Shraman told him ___ “O King ! A forest-region, a theatre, a sugarcane field or a thrashing place looks bright initially but later on to gives a despiring (lonely) look. You are loveable (liked by the people popular) now. Be cautious that you may not become unpopular later."
Pradeshi asked—“Reverend Sir ! Forest-region and others are beautiful and pl
al and pleasant in the beginning but later on how do they become ugly ? What is your message with this example ?"
(ख) वणसंडे पत्तिए पुष्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अतीव अतीव * उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसंडे रमणिज्जे भवति। जया णं वणसंडे नो पत्तिए, नो
पुष्फिए, नो फलिए, नो हरियगरेरिज्जमाणे, नो सिरीए अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ तया ण जुन्ने झडे परिसडिय पंडुपत्ते सुक्करुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ तया णं वणे नो रमणि
भवति। अ (ख) केशीकुमार श्रमण ने कहा-“प्रदेशी ! वनखड (उद्यान) जब तक हरे-भरे पत्तों,
पुष्यो, फलो से सम्पन्न और सुहावनी सघन छाया एव हरियाली से युक्त होता है तब तक • अपनी शोभा से सुशोभित होता हुआ रमणीय लगता है। उसे देखकर सबका मन प्रसन्न होता 6 है। लेकिन वही वनखड जब पत्तो, फूलों, फलों और हरियाली से रहित हो जाता है तब
हरा-भरा, देदीप्यमान न होकर कुरूप, भयावना दिखने लगता है। सूखे वृक्षो की छाल-पत्ते
केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
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Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi 16
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