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हता जाणामि–णो देवो चालेइ जाव णो गंधब्बो चालेइ, वाउयाए चालेइ।
पाससि णं तुमं पएसी ! एतस्स वाउकायस्स सरूविस्स सकामस्स सरागस्स समोहस्स
सवेयस्स सलेसस्स ससरीरस्स रूवं ? * णो तिणढे (समडे)। ___२६४. (क) इसके पश्चात् प्रदेशी राजा ने कहा
___ "हे भदन्त ! आप अवसर को जानने में निपुण हैं, कार्यकुशल हैं। आपने गुरु से शिक्षा प्राप्त की है। तो क्या आप मुझे हथेली में स्थित ऑवले की तरह शरीर से बाहर जीव को निकालकर दिखा सकते हैं ?" र प्रदेशी राजा ने जब यह कहा ही था कि उसी समय तेज हवा चलने से प्रदेशी राजा के
निकट ही तृण-घास, वृक्ष आदि वनस्पतियाँ हिलने-डुलने लगीं, कॉपने लगीं, फरकने लगीं,
परस्पर टकराने लगीं, अनेक विभिन्न रूपों में परिणत होने लगीं। * यह देखकर केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी से पूछा
"हे प्रदेशी ! तुम इन तृणादि वनस्पतियों को हिलते-डुलते, कॉपते-टकराते देख * रहे हो?"
प्रदेशी–“हाँ, भदन्त ! देख रहा हूँ।" श्री केशीकुमार श्रमण-"तो प्रदेशी ! क्या तुम यह भी जानते हो कि इन तृण-वनस्पतियों
को कोई देव हिला रहा है अथवा असुर हिला रहा है अथवा कोई नाग, किन्नर, किंपुरुष, H) महोरग अथवा गंधर्व हिला रहा है ?"
प्रदेशी-“हाँ, भदन्त ! जानता हूँ। इनको न तो कोई देव हिला-डुला रहा है, यावत् न * गंधर्व हिला रहा है। ये वायु से हिल-डुल रही हैं।''
केशीकुमार श्रमण-“हे प्रदेशी ! क्या तुम उस मूर्त (रूपवान), काम, राग, मोह, वेद, लेश्या और शरीरधारी वायु के रूप को देख सकते हो?'
प्रदेशी-“भदन्त ! मैं उसे नहीं देख पाता हूँ।" * 264. (a) Thereafter, king Pradeshi said
“Sir ! You are expert in judging the occasion, you are intelligent * in performing your duties. You have received good education from
your master. Can you show me soul (taking it out from the body)
like an amla-fruit placed on the palm on the hand ?" * रायपसेणियसूत्र
Rar-paseniya Sutra
(372)
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