Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 441
________________ (ग) अटवी में आगे चलते-चलते वे लोग एक स्थान पर पहुँचे, वहाँ उन्होंने एक विशाल त्रपु - सीसे की खान देखी, तब एक-दूसरे को बुलाकर कहा - "हे देवानुप्रियो ! हमें इस सीसे का संग्रह करना लाभदायक होगा। बहुत से लोहे को छोडकर हमे थोडा सीसा ले लेना अधिक लाभदायक है।" आपस मे एक- दूसरे ने इस विचार को स्वीकार किया और लोहे को छोड़कर सीसे के पोटले बाँध लिये । किन्तु उनमें से एक व्यक्ति लोहे को छोड़कर सीसे का भारा बाँधने के लिए तैयार नहीं हुआ । (c) When they went ahead in the forest, they found a mine of tin. They then called each other and said "O the blessed! The collection of tin shall be more beneficial to us. We should discard the iron-load and collect some tin." Having decided in this manner, they discarded the iron and tied the bundles of tin." But one of them did not agree to discard the iron-load and collect tin. (घ) तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया ! तउयभंडे जाव सुबहु अए लब्भति, तं छड्डेहि णं देवाणुप्पिया ! अयभारगं, तउयभारगं बंधाहि । तए णं ते पुरिसे एवं वयासी - दूराह मे देवाणुप्पिया ! अए, चिराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए, अइगाढबंधणबद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए, असिढिलबंधणबद्धे देवाणुप्पिया ! अए, धणियबंधणबद्धे देवाणुपिया ! अए, णो संचाएमि अयभारगं छड्डेत्ता तउयभारगं बंधत्त । (घ) तब दूसरे साथियों ने अपने उस साथी से कहा - "देवानुप्रिय ! हमें लोहे की अपेक्षा इस सीसे का सग्रह करना अधिक अच्छा है, इस थोडे से सीसे से बहुत-सा लोहा प्राप्त किया जा सकता है। अतएव देवानुप्रिय ! तुम इस लोहे को छोड़कर सीसे का भारा बाँध लो ।” तब उस व्यक्ति ने कहा-“देवानुप्रियो ! मैं इस लोहे के भारे को बहुत दूर से लादे चला आ रहा हूँ । इस लोहे को बहुत समय से लादे हुए हूँ | मैंने इस लोहे को बहुत कसकर बाँधा है। मैने इस लोहे को मजबूत बधन से बाँधा है । मैंने इस लोहे को अत्यधिक प्रगाढ बंधन से बाँध रखा है। इसलिए मै इस लोहे को छोड़कर सीसे के भार को नहीं बाँध सकता।" (d) Then his other companions advised him-"O the blessed! It is more beneficial to collect tin instead of iron. From a small रायपसेणियसूत्र Jain Education International (382) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org

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