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different entities. Later same was the belief of my father, thereafter ** I have also the same faith. So how should I leave the traditional
faith having been followed since many generations ?” लोह वणिक् का दृष्टान्त __२६७. (क) तए णं केसी कुमारसमणे पएसिरायं एवं वयासी___ मा णं तुमं पएसी ! पच्छाणुताविए भवेज्ञासि, जहा व से पुरिसे अयहारए।
के णं भंते ! से अयहारए ? पएसी ! से जहाणामए केई पुरिसा अत्थत्थी, अत्थगवेसी, अत्थलुद्धगा,
अत्थकंखिया, अत्थपिवासिया अत्थगवेसणयाए विउलं पणियभंडमायाए सुबहुं " भत्तपाणपत्थयणं गहाय एगं महं अकामियं छिनावायं दीहमद्धं अडविं अणुपविट्ठा।।
२६७. (क) प्रदेशी राजा की बात सुनकर केशीकुमार श्रमण ने उत्तर दिया____ “प्रदेशी ! तुम उस अयोहारक (लोहे के भार को ढोने वाले लोह वणिक) की तरह
पश्चात्ताप करने वाले मत होना। (अर्थात् जैसे वह लोह वणिक् पछताया उसी तरह तुम्हें भी * अपनी कुल परम्परागत अन्ध-श्रद्धा के कारण पछताना नहीं पडे।)"
__ प्रदेशी ने पूछा-'भदन्त ! वह अयोहारक कौन था और उसे क्यों पछताना पडा?"
__केशीकुमार श्रमण बोले-“प्रदेशी ! कुछ धन के अभिलाषी, धन की गवेषणा करने वाले, * धन के लोभी, धन की काक्षा और धन की लिप्सा वाले पुरुष धनोपार्जन करने के लिए
विपुल परिमाण मे बिक्री करने योग्य पदार्थों और खाने-पीने के लिए पर्याप्त पाथेय (भाता)
साथ मे लेकर एक ऐसी निर्जन, हिसक प्राणियों से व्याप्त बहुत बडी अटी (वन) में जा * पहुँचे जिस अटवी में पार होने के लिए रास्ता पाना भी कठिन था।"
EXAMPLE OF DEALER IN IRON
267. (a) After hearing king Pradeshi, Keshi Kumar Shraman replied,
“O Pradeshi ! You do not become repentant like that dealer in iron who carried the iron load. In other words just as that dealer repented, you may also not have to repent because of blind faith resulting from family tradition.” ___Pradeshi asked-"Sir ! Who was that dealer and what caused him to repent ?"
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रायपसेणियसूत्र
(380)
Rai-paseniya Sutra
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