________________
“आपकी उपमा वास्तविक नहीं है । बुद्धि से कल्पित है, इसलिए मै इन्हें नहीं मानता। किन्तु जो कारण मैं बता रहा हूँ, उससे जीव और शरीर की भिन्नता सिद्ध नहीं होती है। वह कारण इस प्रकार है
हे भदत । जैसे कोई एक तरुण, बलशाली, निरोग, स्थिर संहनन वाला, कुशल, बुद्धिमान और अपना कार्य सिद्ध करने में निपुण पुरुष क्या एक साथ अपने शरीर में लगे पाँच बाणों को निकालने में समर्थ है ?"
केशीकुमार श्रमण - "हॉ, वह समर्थ है।"
प्रदेशी - " लेकिन वही पुरुष यदि बालक तथा मंद ज्ञान वाला होता तो भी क्या पाँच art at क साथ निकालने में समर्थ होता ? यदि होता तो हे भदन्त ! मैं यह श्रद्धा कर सकता था कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है, लेकिन वही बाल, मद ज्ञान वाला पुरुष पाँच बाणों को एक साथ निकालने में समर्थ नहीं होता है, इसलिए मेरी यह धारणा सही है कि जीव और शरीर एक ही हैं। जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है । "
252. After hearing these arguments, king Pradeshi said
"Your illustrations are not actual events. They are product of intellect, so I do not believe them. But the reasons which I put forward do not prove that soul and body are different entities. My reasoning is as under
Reverend Sir ! There is a young, strong, healthy, well-built, clever, intelligent person who is expert in performing his duties. Can he simultaneously take out five arrows that have struck him?"
Keshi Kumar Shraman replied - "Yes. He can.”
Pradeshi said "In case that man had yet been a child and of low intellect, could he then also take out five arrows from his body simultaneously. In case he could do, I could believe that soul is different from the body. But that child with low intellect is not able to take out five arrows simultaneously. So I have the firm belief that soul and body are one. Soul is body and body is soul.”
धनुषा दृष्ट
२५३. तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी
से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जाव सिप्पोवगए णवएणं धणुणा नवियाए जीवा नवणं इसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ?
केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
Jain Education International
(347) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi
For Private
Personal Use Only
www.jainelibrary.org