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विवेचन-यहाँ प्रदेशी राजा का तर्क है कि दोनी पुरुषो मे शारीरिक क्षमता का अन्तर क्यो है ? यदि शरीर से आत्मा भिन्न होता तो आपके कथनानुसार आत्मा तो दोनो मे ही समान है, फिर यह अन्तर क्यो कि
पडा ? इससे यह सिद्ध होता है कि शरीर ही मुख्य है, शरीर के कारण ही वह शक्ति-सम्पन्न है। आत्मा * या चेतना नाम की भिन्न शक्ति नहीं है। इसके समाधान मे केशीकुमार श्रमण ने पुराने धनुष का उदाहरण
दिया है, बाण फेकने वाला साधक और धनुष व डोरी आदि बाण फेकने के साधन-दोनो ही जब समर्थ/सक्षम होते है तभी कार्य सम्पन्न होता है। इसी प्रकार जीव साधक है, शरीर साधन है। यदि शरीर
दुर्बल या रोगी है तो शक्ति-सम्पन्न जीव भी अपना कार्य सिद्ध नही कर सकता। दूसरा कावड का * उदाहरण भी साधनो की अपर्याप्तता को ही शरीर की अक्षमता का कारण सिद्ध करता है। पर्याप्त * उपकरणो के अभाव मे समर्थ सुदक्ष सेना भी हार जाती है, इससे यही सिद्ध होता है कि उपकरण भिन्न है और उपकरणो से कार्य करने वाला भिन्न है, दोनो एक नही है।
Elaboration—Here the argument of king Pradeshi why is there the * difference in physical capability of the two persons ? In case soul is
different from the body, soul being identical in the two, why is the difference (in strength) This fact proves that body is the main organ The strength is because of the body. There is no other power such as soul or consciousness In reply Keshi Kumar Shraman gave the example of an old bow. A work is completed if the person throwing, the arrow, the bow and its string are all strong and capable. Similarly Jiva (soul) is the person, body is the instrument If the body is weak and disease-ridden, even a strong person cannot complete his task. The second example of Kavar (the big basket) also indicates the unsufficiency in strength of the means as the body is weak Absence of proper needed instruments leads to the defeat of even a strong army This fact proves that the means (the instruments) and the person using the instruments are different. Both are not the same entities
२५६. तए णं से पएसी केसिकुमारसमणं एवं वयासी____ अस्थि णं भंते ! जाव (एस पण्णा उवमा इमेण पुण कारणेणं) नो उवागच्छइ, एवं क खलु भंते ! जाव विहरामि। तए णं मम णगरगुत्तिया चोरं उवणेति। तए णं अहं तं पुरिसं
जीवंतगं चेव तुलेमि, तुलेत्ता छविच्छेयं अकुव्वमाणे जीवियाओ ववरोवेमि, मयं तुलेमि, णो चेव णं तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स वा मुयस्स वा तुलियस्स केइ आणत्ते वा, नाणत्ते वा, ओमत्ते वा, तुच्छत्ते वा, गुरुयत्ते वा, लहुयत्ते वा, जति णं भंते ! तस्स
पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स मुयस्स वा तुलियस्स केइ अन्नत्ते वा जाव लहुयत्ते वा तो " णं अहं सद्दहेजा तं चेव।
SARDAR.985404999909200000DROPDARPAROSAROSAROSARDAROD8.
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केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(353)
Keshi Kumar Shraman and King Pradesh
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