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अरणि का दृष्टान्त
२५९. (क) तए णं केसिकुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासीमूढतराए णं तुमं पएसी ! ताओ तुच्छतराओ। के णं भंते ! तुच्छतराए ?
पएसी ! से जहाणामए केइ पुरिसे वणत्थी वणोवजीवी वणगवेसणयाए जोइं च * जोइभायणं च गहाय कट्ठाणं अडविं अणुपविट्ठा, तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए जाव
किंचिदेसं अणुप्पत्ता समाणा एगं पुरिसं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कट्ठाणं अडविं पविसामो, एत्तो णं तुमं जोइभायणाओ जोइं गहाय अहं असणं साहेज्जासि। अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेज्जा एत्तो णं तुम कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि, त्ति कटु कट्ठाणं अडविं अणुपविट्ठा।
२५९.. (क) प्रदेशी राजा की बात सुनकर केशीकुमार श्रमण ने कहा___ “हे प्रदेशी ! तुम तो मुझे उस मूर्ख कठियारे से भी अधिक मूढ-अज्ञानी प्रतीत होते हो।'
प्रदेशी-(चौंककर) “हे भदन्त ! कौन-सा मूढ-अज्ञानी कठियारा?' __ केशीकुमार श्रमण-(कठियारे का उदाहरण देते हैं) “हे प्रदेशी | एक बार वन में रहने वाले और वन से आजीविका चलाने वाले कुछ पुरुष वन में उत्पन्न वस्तुओं की खोज करने
के लिए आग और जलती अँगीठी साथ लेकर लकड़ियों के वन में चले गये। दुर्गम वन के में किसी प्रदेश में पहुंचने पर उन पुरुषों ने अपने एक साथी से कहा-'देवानुप्रिय । हम इस
लकड़ियों के जंगल में जाते हैं। तुम यहाँ अँगीठी से आग लेकर हमारे लिए भोजन तैयार करना। यदि अंगीठी की आग बुझ जाये तो तुम इस लकडी (अरणि-काष्ठ) से आग पैदा करके हमारे लिए भोजन बनाकर तैयार रखना।' इस प्रकार कहकर वे सब उस काष्ठ-वन मे प्रविष्ट हो गये। EXAMPLE OF ARANI ____ 259. (a) After listening the argument of king Pradeshi, Keshi Kumar Shraman said
“O Pradeshi ! You appear to me a greater fool than that foolish wood-cutter.” ___Pradeshi (feeling perturbed) said-"Sir ! Which foolish, ignorant wood-cutter ?"
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रायपसेणियसूत्र
(358)
Rar-paseniya Sutra
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