Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan
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हंता, पभू।
सो चेव णं पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए कोरिल्लिएणं धणुणा कोरिल्लियाए जीवाए कोरिल्लिएणं इसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ?
णो तिणमट्टे समठे। कम्हा णं ? भंते ! तस्स पुरिसस्स अपज्जत्ताई उवगरणाइं हवंति।
एवामेव पएसी ! सो चेव पुरिसे बाले जाव मंदविन्नाणे अपनत्तोवगरणे, णो पभू पंचकंडयं निसिरित्तए, तं सदहाहि णं तुमं पएसी ! जहा अन्नो जीवो तं चेव। र २५३. प्रदेशी राजा के प्रत्युत्तर में केशीकुमार श्रमण ने कहा
_ “राजन् ! कोई एक तरुण पुरुष, जो कार्य करने में निपुण हो, नवीन धनुष, नई प्रत्यचा " (डोरी) और नवीन बाण से एक साथ पाँच बाण छोडने में समर्थ होता है अथवा नहीं ?" ।
प्रदेशी-“हाँ, समर्थ होता है।" । __ केशीकुमार श्रमण-“लेकिन वही तरुण और कुशल पुरुष जीर्ण-शीर्ण, पुराने धनुष,
जीर्ण प्रत्यंचा और वैसे ही जीर्ण बाण से क्या एक साथ पाँच बाणों को छोड़ने में समर्थ हो ॐ सकता है?'
प्रदेशी-“भदन्त ! ऐसा नहीं होता। अर्थात् पुराने धनुष आदि से वह एक साथ पाँच बाण छोडने में समर्थ नहीं हो सकता।''
केशीकुमार श्रमण-"प्रदेशी ! इसका क्या कारण है कि वह एक साथ पाँच बाण छोडने में समर्थ नहीं होता?" ___ प्रदेशी-“भदन्त ! उस पुरुष के पास उपकरण-साधन पर्याप्त नहीं हैं।" ___केशीकुमार श्रमण ने कहा-"प्रदेशी ! इसी प्रकार वह बाल मंद विज्ञानी पुरुष योग्यता
रूप उपकरण की अपर्याप्तता के कारण एक साथ पॉच बाणों को छोड़ने में समर्थ नहीं हो
पाता है। अर्थात् उसमें जीव की क्षमता तो समान ही है किन्तु शरीर रूप साधन की अक्षमता र है। अतः प्रदेशी ! तुम यह श्रद्धा-प्रतीति करो कि जीव और शरीर पृथक्-पृथक् हैं। जीव
शरीर नहीं और शरीर जीव नहीं है।" रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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