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चित्र परिचय-१२
Illustration No. 12
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जीव की अप्रतिहत गति राजा प्रदेशी पूछता है- “आपके मतानुसार शरीर से जीव भिन्न है। मै यह नही मानता। क्योकि मैने एक अपराधी को पकडकर जीवित ही एक छिद्ररहित लौह-कुम्भी मे डालकर कुम्भी को बन्द करके उस पर लेप लगाकर ताला डाल दिया था। कुछ दिन बाद देखा तो वह अपराधी मर चुका था। किन्तु कुम्भी मे जीव निकलने का कही भी कोई छेद या निशान नहीं मिला।”
समाधान देते हुए केशीकुमार श्रमण बोले-'राजन् । जैसे कोई पुरुष एक कूटाकारशाला मे प्रविष्ट होकर उसे चारो तरफ से हवा बन्द करके भीतर नगाडा पीटे तो उस नगाडे की आवाज बाहर सुनाई देती है या नही?"
राजा प्रदेशी-“देती है।'' केशीकुमार श्रमण-“उस शाला मे आवाज निकलने का कोई छिद्र नही होने पर भी आवाज बाहर आती है, उसी प्रकार जीव अप्रतिहत गति वाला है। उसकी गति कही रुकती नही।"
-सूत्र २४८-२४९, पृष्ठ ३४०-३४३
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UNRESTRAINED MOVEMENT OF SOUL King Pradeshi asks—“According to you body and soul are separate I don't accept this This is because once I caught a criminal and put him in an iron vessel with no hole Then the vessel was locked and sealed with a sealing paste When I checked the vessel a few days later I found the criminal dead and there was no hole or other sign of the soul escaping” ___Keshi Kumar Shraman explained "O King | Imagine a person
entering a concealed clandestine room, hermetically sealing it and then beating a drum inside is the sound of the drum-beat audible outside or
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not
King Pradeshi— “Yes, it is."
Keshi Kumar Shraman-“Although there is no hole through which the sound can escape, it still comes out In the same way soul has unrestrained movement Nothing stops its movement"
-Sutras 248-249, pp 340-343
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