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संबंधि-परिजणं एवं वयामि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पावाई कम्माई समायरेत्ता * इमेयारूवं आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुभे वि केइ पावाई कम्माई समायरह, मा णं से वि एवं चेव आवई पाविजिहिह जहा णं अहं।'
तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमढें पडिसुणेज्जासि ? णो तिणढे समढे। कम्हा णं? जम्हा णं भंते ! अवराही णं से पुरिसे। २४५. (क) प्रदेशी राजा की युक्ति सुनकर केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा को उत्तर
दिया
_ “हे प्रदेशी ! तुम्हारी सूर्यकान्ता नाम की रानी है ?'' । प्रदेशी-“हाँ, भदन्त ! है।"
केशीकुमार श्रमण-"तो (कल्पना करो) हे प्रदेशी ! यदि तुम उस सूर्यकान्ता देवी को * स्नान, बलिकर्म और कौतुक मंगल-प्रायश्चित्त करके एवं समस्त आभरण-अलंकारों से विभूषित होकर किसी ऐसे ही स्नान करके आभरण-अलंकारों से विभूषित हुए पुरुष के साथ मनोनुकूल शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध मूलक पॉच प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगते हुए देख लो तो हे प्रदेशी ! उस पुरुष के लिए तुम क्या दण्ड निश्चित करोगे?"
प्रदेशी-“भगवन् ! मैं उस पुरुष के हाथ काट दूंगा, उसे शूली पर चढा दूंगा, भालों से छेद डालूंगा, पैर काट दूंगा अथवा एक ही प्रहार से जीवनरहित कर दूंगा-मार डालूंगा।"
प्रदेशी राजा का कथन सुनकर केशीकुमार श्रमण ने कहा-“हे प्रदेशी ! यदि वह पुरुष * तुमसे यह कहे कि 'हे स्वामिन् ! आप घडीभर रुक जाओ, तब तक आप मेरे हाथ न काटें,
यावत् मुझे प्राणरहित न करें जब तक मैं अपने मित्र, ज्ञातिजन, पुत्र आदि स्वजन सम्बन्धी * और परिचितों से यह कह आऊँ कि हे देवानुप्रियो ! इस प्रकार के पापकर्मों का आचरण करने * के कारण मैं यह दण्ड भोग रहा हूँ, अतएव हे देवानुप्रियो ! तुम कोई ऐसे पापकर्मों में प्रवृत्ति
मत करना, जिससे तुमको भी इस प्रकार का दण्ड भोगना पडे, जैसा कि मै भोग रहा हूँ।' ___ तो हे प्रदेशी ! क्या तुम क्षणमात्र के लिए उस पुरुष की यह बात मानोगे, उसे छोड दोगे?"
प्रदेशी-“भदन्त ! मैं उसकी यह बात नहीं मानूँगा।"
रायपसेणियसूत्र
(320)
Rar-paseniya Sutra
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