Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan
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9 (ख) एवामेव पएसी ! तव वि अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए णयरीए अधम्मिए जाव णो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ, से णं अम्हं वत्तव्बयाए सुबहुं जाव उववन्नो, तस्स णं अज्जगस्स तुमं णत्तुए होत्था, इट्टे कंते जाव पासणयाए। से णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हब्बमागछित्तए।
चउहिं ठाणेहिं पएसी अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए इच्छेइ माणुसं लोगं हबमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ
(१) अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए से णं तत्थ महत्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हवं आगच्छित्तए णो चेव णं संचाएइ।
(२) अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए निरयपालेहिं भुजो-भुज्जो समहिद्विजमाणे इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ।
(३) अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि - अनिज्जित्रंसि इच्छइ माणुसं लोगं (हब्बमागच्छित्तए) नो चेव णं संचाएइ।
(४) एवं णेरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिनसि इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ।
इच्चेएहिं चउहिं ठाणेहिं पएसी ! अहुणोववन्ने नरएसु नेरइए इच्छइ माणुसं लोगं हब्वमागच्छित्तए णो चेव णं संचाइए।
तं सद्दहाहि णं पएसी ! जहा-अनो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं। * (ख) “हे प्रदेशी ! इसी प्रकार तुम्हारे पितामह के विषय में भी समझो, जिन्होंने इसी
सेयविया नगरी में अधार्मिक होकर हिंसामय जीवन व्यतीत किया, प्रजाजनों से कर लेकर भी उनका अच्छी तरह से पालन और संरक्षण नहीं किया। हमारे कथनानुसार वे बहुत से पापकर्मों का उपार्जन करके नरक में उत्पन्न हुए हैं। उन्हीं पितामह के तुम अत्यन्त प्रिय पौत्र हो। यद्यपि वे शीघ्र ही मनुष्यलोक में आकर तुम्हें वहाँ के विषय में बताना चाहते हैं किन्तु वहाँ से आ नहीं सकते हैं। ___ क्योंकि प्रदेशी ! नरक में तत्काल नारक रूप से उत्पन्न जीव शीघ्र ही चार कारणों से * मनुष्यलोक में आने की इच्छा तो करते हैं, किन्तु वहाँ से आ नहीं पाते हैं। वे चार कारण
इस प्रकार हैं
रायपसेणियसूत्र
(322)
Rar-paseniya Sutra
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