Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan
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चऊहिं ठाणेहिं पएसी ! अहुणोववण्णए देवे देवलोएसु इच्छेज्जा माणुसं लोगं * हव्यमागच्छित्तए णो चेव णं संचाइए
(१) अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए-गिद्धे-गढिएअझोववण्णे से णं माणुसे भोगे नो आठाति, नो परिजाणाति, से णं इच्छिज्ज माणुसं लोग हव्व मागच्छित्तए णो चेव णं संचाएति।
(२) अहुणोववण्णए देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुछिए जाव अझोववण्णे, तस्स णं माणुस्से पेम्मे वोच्छिन्नए भवति, दिव्ये पिम्मे संकंते भवति, से णं इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्यमागच्छित्तए णो चेव णं संचाएइ।
(३) अहुणोववण्णे देवे दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए जाव अझोववण्णे, तस्स णं एवं
भवइ-इयाणिं गच्छं मुहत्तं जाव इह गच्छं, अप्पाउया णरा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति, * से णं इच्छेज्जा माणुस्सं. णो चेव णं संचाएइ।
(४) अहुणोववण्णे देवे दिव्वेहिं जाव अझोववण्णे, तस्स माणुस्सए उराले दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे भवइ, उड्ढं पि य णं चत्तारि पंच जोअणसए असुभे माणुस्सए गंधे
अभिसमागच्छति, से णं इच्छेज्जा माणुसं. णो चेव णं संचाइज्जा। ___ इच्चेएहिं ठाणेहिं पएसी ! अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए, तं सदहाहि णं तुमं पएसी ! जहाअन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं। २४७. तब केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा
“हे प्रदेशी ! (कल्पना करो) यदि तुम स्नान, बलिकर्म और कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त करके गीली धोती पहन, झारी और धूपदान हाथ में लेकर देव-मन्दिर में प्रवेश कर रहे हो और उस समय कोई पुरुष (शौचालय साफ करके मल उठाने वाला) विष्ठागृह
(शौचालय) में खडे होकर तुम्हें कहे कि 'हे स्वामिन् ! आओ और क्षणमात्र के लिए यहाँ * बैठो, खड़े होओ और लेटो', तो क्या हे प्रदेशी ! एक क्षण के लिए भी तुम उस पुरुष की
यह बात स्वीकार कर सकते हो?" प्रदेशी-“हे भदन्त ! यह सम्भव नहीं है, मैं उस पुरुष की बात स्वीकार नहीं करूंगा।" केशीकुमार श्रमण-"ऐसा क्यों?'
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केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(327)
Kesh Kumar Shraman and King Pradeshi
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