Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 368
________________ (१) नरक में तुरन्त उत्पन्न नारक वहाँ की अत्यन्त तीव्र वेदना का वेदन करने के कारण " (उससे छुटकारा पाने के लिए) मनुष्यलोक में शीघ्र आने की इच्छा करते हैं, किन्तु आने मे असमर्थ रहते हैं। (२) नरक में तत्काल नैरयिक रूप से उत्पन्न जीव परमाधार्मिक नरकपालों द्वारा बारम्बार ताडित-प्रताडित किये जाने से घबराकर शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा 8) तो करते हैं, किन्तु वैसा नहीं कर पाते हैं (क्योंकि नरकपाल आने नहीं देते)। (३) तत्काल उत्पन्न नारक जीव मनुष्यलोक में आने की बार-बार इच्छा तो करते हैं, किन्तु नरक सम्बन्धी असातावेदनीय कर्म के बंधन में बँधे होने के कारण उन कर्मों का वेदन र एवं निर्जरा नहीं होने से वहाँ से निकलने में समर्थ नहीं हो पाते हैं। (४) इसी प्रकार नरक सम्बन्धी आयुकर्म के क्षय नहीं होने से, अर्थात् आयुष्य कर्म का भोग समाप्त नहीं होने के कारण नारक जीव मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा रखते हुए भी वहाँ से आ नहीं सकते हैं। ___ अतएव हे प्रदेशी ! तुम इस बात पर विश्वास करो, श्रद्धा रखो कि जीव अन्य-(भिन्न) है और शरीर अन्य है। किन्तु यह मत मानो कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है।" (b) (Keshi Kumar Shraman said) “O Pradeshi ! You understand about your grandfather in a similar way. He spent a violent * extremely cruel way of life, being irreligious. In this very Seyaviya town, he recovered taxes from the people but did not properly look after them. He did not provide them proper security. According to this version, he must have taken birth in hell as a collecting fruit of many sins. You are his most loveable grandson. He wants to come to you in this world inhabited by human-beings and tell you about the tortures in the hell. But he cannot come out from there because the newly born hellish being cannot come from hell for four reasons. The said four reasons are as under (1) The hellish beings (who have just taken birth there) want to come to the human world as they undergo extreme pain and tortures of that area (they are desirous of freeing themselves from there). But they are not capable to do so. केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (323) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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