________________
and 'body' are one or that they are two different entities was a topic of hot discussion in that period. The argument of both sides (schools of thought) were almost similar to those mentioned above. Keshi Kumar Shraman gave a befitting reply to the questions of king Pradeshi in this context and that is based on reason and logic It is further discussed in the aphorism that are to follow.
राजा प्रदेशी का तर्क : पितामह का उदाहरण
२४४. तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी
जति णं भंते ! तुब्भं समणाणं णिग्गंथाणं एसा सण्णा जाव समोसरणे जहा अण्णो जीव अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं, एवं खलु ममं अज्जए होत्था, इहेव जंबूद्दीवे
वे सेविया गरीए अधम्मिए जाव सगस्स वि य णं जणवयस्स नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेति, से णं तुब्भं वत्तव्ययाए सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुस समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु नरयेसु रइयत्ताए उबवण्णे ।
तस्स णं अज्जगस्स णं अहं णत्तुए होत्था इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुष्कं पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए जति णं से अज्जए ममं आगंतुं वज्जा
एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेमि, तए णं अहं सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुतं समज्जिणित्ता नरसु उववण्णे, तं माणं नत्तुया ! तुमं पि भवाहि अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेहि, मा णं तुमं पि एवं चेव सुबहुं पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि ।
तं जइ णं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा जहा अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं । जम्हा णं से अज्जए ममं आगंतुं नो एवं वयासी । तम्हा सुपइट्ठिया मम पन्ना समणाउसो ! जहा तज्जीवो तं सरीरं । ने कहा
२४४. तब केशीकुमार श्रमण से प्रदेशी राजा
"हे भदन्त ! यदि आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा - सिद्धान्त है कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है, किन्तु ऐसी मान्यता नही है कि जो जीव है वही शरीर है, तो फिर बताये - मेरे पितामह, जो इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप की सेयविया नगरी में अधार्मिक यावत् राज - कर लेकर भी अपने जनपद का भलीभाँति पालन, रक्षण नहीं करते थे, वे आपके
शीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
Jain Education International
(317)
Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org