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___ मणपज्जवनाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उज्जुमई य, विउलमई य।
तहेव केवलनाणं सव्वं भाणियव्वं ।
तत्थ णं जे से आभिणिबोहियनाणे से णं ममं अत्थि, तत्थ णं जे से सुयनाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से ओहिणाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से मणपज्जवनाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से केवलनाणे से णं ममं नत्थि, से णं अरिहंताणं भगवंताणं।
इच्चेएणं पएसी अहं तव चउविहेणं छउमत्थेणं णाणेणं इमेयारूवं अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं जाणामि पासामि।
२४१. तब केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा- "हे प्रदेशी ! हम निर्ग्रन्थ श्रमणों के शास्त्रों में ज्ञान के पाँच प्रकार बतलाये हैं। वे पाँच प्रकार ये है-(१) आभिनिबोधिकज्ञान (मतिज्ञान), (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्यवज्ञान, और (५) केवलज्ञान।' _प्रदेशी-“आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ?" ___ केशीकुमार श्रमण-“आभिनिबोधिकज्ञान चार प्रकार का है-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा।" __ प्रदेशी-“अवग्रह कितने प्रकार का है ?''
केशीकुमार श्रमण-“अवग्रह दो प्रकार का है। इत्यादि धारणा पर्यन्त आभिनिबोधिकज्ञान का विवेचन नंदीसूत्र के अनुसार यहाँ समझना चाहिए।" ___ प्रदेशी-"श्रुतज्ञान कितने प्रकार का है ?" ___ केशीकुमार श्रमण- "श्रुतज्ञान दो प्रकार का है, यथा-(१) अंगप्रविष्ट, और (२) अंगबाह्य। दृष्टिवाद पर्यन्त श्रुतज्ञान के भेदों का समस्त वर्णन नन्दीसूत्र के अनुसार यहाँ समझ लेना चाहिए।
अवधिज्ञान दो प्रकार का है-(१) भवप्रत्ययिक, और (२) क्षायोपशमिक। इनका विवेचन भी नंदीसूत्र के अनुसार यहाँ जान लेना चाहिए। ___ मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार का है, यथा-(१) ऋजुमति, और (२) विपुलमति।
इसी प्रकार केवलज्ञान का भी वर्णन नंदीसूत्र के अनुरूप करना चाहिए।
इन पाँच ज्ञानों में से आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान मुझे प्राप्त है, किन्तु केवलज्ञान प्राप्त नहीं है। वह केवलज्ञान अरिहंत भगवन्तों को होता है।
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केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(309)
Kesh Kumar Shraman and King Pradesh
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