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(3) Avadhi Jnan (Visual Knowledge)-To know visual things directly hrough the soul and without any assistance of sense-organs or mind is called Avadhi Jnan.
(4) Manah Paryav Jnan (Mental Knowledge)-The knowledge which 9 helps in reading the modes of the mind directly is called Manah Paryav Jnan
(5) Kewal Jnan (Perfect Knowledge)—The knowledge that helps to know all the visual and non-visual substances, thoughts clearly like the lines on the palms of hand directly and without the assistance of senseorgans or the mind is called Kewal Jnan. This Jnan (knowledge) is without any blockade, is always in existence and is permanent.
Out of the said five types of knowledge the first two are indirect and the last three are direct Jnan. तज्जीव-तच्छरीरवाद का मंडन-खंडन
२४२. तए णं से पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वयासी-अह णं भंते ! इहं उवविसामि ?.
पएसी ! एसाए उज्जाणभूमीए तुमंसि चेव जाणए।
तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धिं केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते उवविसइ। केसिकुमारसमणं एवं वयासी-तुब्भे णं भंते ! समणाणं णिग्गंथाणं एसा सण्णा', एसा पइण्णा', एसा दिट्ठी३, एसा रुई, एस हेऊ', एस उवएसे६, एस
संकप्पे, एसा तुला', एस माणे, एस पमाणे१०, एस समोसरणे११ जहा अण्णो जीवो * अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं ? * २४२. (पाँच ज्ञान-सम्बन्धी उक्त कथन को खड़े-खडे ही सुनने के बाद) प्रदेशी राजा
ने केशीकुमार श्रमण से निवेदन किया-'भदन्त ! क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ ?' ___केशी-“हे प्रदेशी ! यह उद्यान-भूमि तुम्हारी अपनी है, अतएव बैठने या न बैठने के विषय मे तुम स्वय निर्णय कर सकते हो।"
चित्त सारथी के साथ प्रदेशी केशीकुमार श्रमण के समीप आकर बैठ गया और 2 केशीकुमार श्रमण से इस प्रकार पूछा-भदन्त ! क्या आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा
(ज्ञान) है, प्रतिज्ञा है, दृष्टि है, रुचि है, हेतु है, उपदेश है, संकल्प है, मान्यता है, दृढ धारणा
है, प्रत्यक्षादि प्रमाणसंगत मंतव्य है और समवसरण है कि जीव अन्य है और शरीर अन्य 2 है? अर्थात् शरीर और जीव दोनों एक नहीं हैं ?"
रायपसेणियसूत्र
(312)
Raz-paseniya Sutra
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