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संस्तारक (सूखे तृण पुलाल) आदि उन-उनके स्वामियो को सौंपकर केशीकुमार श्रमण श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक चैत्य से बाहर निकले। अपने पाँच सौ अन्तेवासी अणगारों के साथ विहार करते हुए केकय-अर्ध जनपद की 'सेयविया' नगरी के ‘मृगवन' नामक उद्यान में पधारे। यथाप्रतिरूप अवग्रह-(मुनि-मर्यादा के अनुसार ठहरने की आज्ञा-अनुमति) लेकर सयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। ARRIVAL OF KESHI KUMAR SHRAMAN IN SEYAVIYA ___230. Once keeping in mind the request of Chitta Saarthi, Keshi Kumar Shraman thought of going to Seyaviya. Keshi Kumar Shraman returned the stool, the pot, the beds, the bedding of dry straw and other such articles (which could be returned after their use) to their masters. He then came out from Koshthak garden of Shravasti town. He wandering along with his five hundred saints came to Mrigavan garden in Seyaviya town of Kekaya-ardh state.
After seeking permission of stay (as is the tradition among saints), 9 he started staying following the principles of ascetic discipline.
२३१. तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग महया जणसद्दे वा. परिसा णिगच्छइ।
तए णं ते उज्जाणपालगा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हद्वतुटु जाव हियया जेणेव केसी कुमारसमणे तेणेव उवागच्छन्ति, केसि कुमारसमणं वंदंति नमंसंति, अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणंति, पाडिहारिएणं जाव संथारएणं उवनिमंतंति, णाम-गोयं पुच्छंति, ओधारेंति, एगंतं अवक्कमंति, अनमनं एवं वयासी
जस्स णं देवाणुप्पिया ! चित्ते सारही दंसणं कंखइ, दंसणं पत्थेइ, सणं पीहेइ, सणं अभिलसइ, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हट्टतुटु जाव हियए भवति, से णं एस
केसी कुमारसमणे पुवाणुपुब्बिं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इह मागए, इह संपत्ते, ht इह समोसढे, इहेव सेयवियाए णगरीए बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं जाव विहरइ। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! चित्तस्स सारहिस्स एयमद्वं पियं निवेएमो, पियं से भवउ।
अण्णमण्णस्स अंतिए एयमटु पडिसुणेति।
जेणेव सेयविया णगरी जेणेव चित्तस्स सारहिस्स गिहे, जेणेव चित्त सारही तेणेव उवागच्छंति, चित्त सारहिं करयल जाव वद्धाति एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिया !
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- रायपसेणियसूत्र
(288)
Rat-paseniya Sutra
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