Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 332
________________ Shop with a large company of warriors. After reaching the garden hele started expressing his devotion for Keshi Kumar Shraman. Then Keshi Kumar Shraman gave him a religious discourse. E राजा को प्रतिबोध देने की प्रार्थना २३३. तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुढे तहेव एवं वयासी एवं खलु भंते ! अम्हं पएसी राया अधम्मिए जाव सयस्स वि णं जणवयस्स नो सम्म करभरवित्तिं पवत्तेइ । तं जइ णं देवाणुप्पिया ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जा बहुगुणतरं खलु होज्जा पएसिस्स रण्णो तेसिं च बहूणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खीसरीसवाणं, तेसिं च बहूणं समणमाहणभिक्खुयाणं। तं जइ णं देवाणुप्पिया ! पएसिस्स बहुगुणतरं होज्जा सयस्स वि य णं जणवयस्स। ___ २३३. धर्मश्रवण कर और उसे हृदय में धारण कर चित्त सारथी हर्षित, सन्तुष्ट एवं 3 चित्त मे आनन्दित हुआ। धर्म के प्रति अनुरागी, परम सौम्यभावयुक्त होकर केशीकुमार श्रमण से निवेदन किया “हे भदन्त ! हमारा प्रदेशी राजा अधार्मिक है, यावत् राज-कर लेकर भी समीचीन रूप से अपने जनपद (प्रजा) का पालन एव रक्षण नहीं करता है। अतएव आप देवानुप्रिय ! यदि प्रदेशी राजा को धर्मोपदेश देंगे तो प्रदेशी राजा के लिए, साथ ही अनेक द्विपद (मनुष्यों), 5 चतुष्पद (पशुओं), मृग, पशु, पक्षी, सरीसृपो आदि के लिए तथा बहुत से श्रमणों, माहणो एव भिक्षुओं आदि के लिए बहुत-बहुत गुणकारी-हितकारी, लाभकारी सिद्ध होगा। __ हे देवानुप्रिय ! यदि वह धर्मोपदेश प्रदेशी के लिए हितकर हो जाता है तो उससे जनपददेश को भी बहुत लाभ होगा।" REQUEST FOR GIVING RELIGIOUS SERMON TO THE KING 233. After listening the religious discourse Chitta Saarthi brooded upon it, accepted it, felt happy and satisfied. He feeling deeply inclined towards Dharma, in a solemn tone requested Keshi Kumar Shraman “Reverend Sir ! Our king Pradeshi is irreligious upto the facts that he receives taxes from the public but does not properly look after them. He does not make them secured. So the reverend Sir ! In case you deliver a religious sermon to king Pradeshi it will be sent केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (293) Keshu Kumar Shraman and King Pradeshi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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