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२३८. तए णं से चित्ते सारही पएसी रायं एवं वयासी-एस णं सामी ! पासावच्चिज्जे * केसी नामं कुमारसमणे जाइसंपण्णे जाव चउनाणोवगए आधोऽवहिए अण्णजीविए।
तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-आहोहियं णं वदासि चित्ता ! * अण्णजीवियत्तं णं वदासि चित्ता !
हंता, सामी ! आहोहिणं वयामि, अण्णजीवियत्तं णं वयामि सामी !
अभिगमणिज्जे णं चित्ता ! एस पुरिसे ? हंता ! सामी ! अभिगमणिज्जे।
अभिगच्छामो णं चित्ता ! अम्हे एवं पुरिसं ? हंता सामी ! अभिगच्छामो। ___२३८. तब चित्त सारथी ने प्रदेशी राजा से कहा-“स्वामिन् ! ये पापित्य-(भगवान ॐ पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुगामी) केशीकुमार नामक श्रमण हैं, जो जाति-सम्पन्न6 (उच्चकुलीन) यावत् मतिज्ञान आदि चार ज्ञानों के धारक हैं। ये आधोऽवधिज्ञान (परमावधि से कुछ न्यून विशिष्ट अवधिज्ञान) से सम्पन्न एवं अन्नजीवी हैं।"
तब आश्चर्यचकित हो प्रदेशी राजा ने चित्त सारथी से कहा- “हे चित्त ! यह पुरुष * आधोऽवधिज्ञान-सम्पन्न है और अन्नजीवी है ?"
चित्त- “हॉ स्वामिन् ! ये आधोऽवधिज्ञान-सम्पन्न एव अन्नजीवी हैं।" * प्रदेशी-“हे चित्त ! तो क्या यह पुरुष अभिगमनीय है अर्थात् इस पुरुष के पास जाकर र बैठना चाहिए?"
चित्त-“हॉ स्वामिन् ! अभिगमनीय है। इनके पास चलना चाहिए।' प्रदेशी-"तो फिर, चित्त ! क्या हम इस पुरुष के पास चले?'' चित्त-"हाँ स्वामिन् ! चलें।"
238. Then Chitta Saarthi told king Pradeshi—“Me lord ! He is Keshi Kumar Shraman of Parshvanath tradition. He belongs to a to high caste, good family and possesses four types of knowledge
(physical, scriptural and others). His transcendental knowledge is just a little less than the highest knowledge. He lives on food.”
Then feeling wonder-struck king Pradeshi asked—“O Chitta ! This person has high transmigratory knowledge and he lives on it ?"
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केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(305)
Keshu Kumar Shraman and King Pradesha
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