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REPAROPAR-DAR GHODogolo alosolasala
driven chariot was standing. He got into it and came back (to his autem **house)
राजा प्रदेशी का उद्यान मे आगमन
२३६. (क) तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहापंडुरे पभाए कयनियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे, जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल जाव त्ति कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, एवं वयासी
एवं खलु देवाणुप्पियाणं कंबोएहिं चत्तारि आसा उवणयं उवणीया, ते य मए देवाणुप्पियाणं अण्णया चेव विणइया। तं एह णं सामी ! ते आसे चिटुं पासह।
तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं चित्ता ! तेहिं चेव चउहिं आसेहिं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि।
२३६. (क) तत्पश्चात् कल-(दूसरे दिन) रात्रि बीत जाने और प्रभात हो जाने पर जब सरोवरों में कोमल उत्पल कमल विकसित हो चुके और धूप भी सुनहरी हो गई, तब नित्य के आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर शरीर चिन्ता से निवृत्त होकर सामायिक-प्रतिक्रमणादि करके तेजयुक्त सहस्ररश्मि दिनकर के चमकने के बाद चित्त सारथी अपने घर से निकला,
जहाँ प्रदेशी राजा का भवन था, वहाँ आया, आकर दोनों हाथ जोडकर जय-विजय शब्दों 5 से प्रदेशी राजा का अभिनन्दन किया और इस प्रकार बोलाकी “स्वामिन् ! कंबोज देशवासियों ने देवानुप्रिय के लिए जो चार घोडे उपहारस्वरूप भेजे
थे, उन्हे मैंने आप देवानुप्रिय के योग्य प्रशिक्षित कर दिया है। अतएव आज आप पधारिए
और उन घोडो की गति आदि चेष्टाओ का निरीक्षण कीजिए।" २ तब प्रदेशी राजा ने चित्त सारथी से कहा-“हे चित्त । तुम जाओ और उन्ही चार घोडों
को रथ मे जोतकर अश्व-रथ को यहाँ लाओ, रथ आने की सूचना मुझे दो।" ARRIVAL OF KING PRADESHI IN THE GARDEN
236. (a) Thereafter, (on the following day) after sunrise while the soft Utpal lotus had blown and it was bright sunshine, he after
undergoing his daily routine and going to the toilet, did his * Samayik (prayer and meditation) and Pratikraman (the confession)
and other such religious duties. He then came out of his house when
the sun had fully brightened up. He came to the palace of king 9 Pradeshi. He praised him with folded hands and said, र रायपसेणियसूत्र
(300)
Ral-paseniya Sutra
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