Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 324
________________ “हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घंटों वाला अश्व-रथ जोतकर लाओ।' इसके बाद जिस प्रकार पहले सेयविया नगरी से प्रस्थान किया था उसी प्रकार श्रावस्ती नगरी से निकलकर बीच-बीच मे विश्राम करता हुआ, कुणाला जनपद के मध्य भाग में से होता हुआ केकय-अर्ध देश मे जहाँ सेयविया नगरी थी और जहाँ उस नगरी का मृगवन नामक उद्यान था, वहाँ आ पहुँचा। वहाँ आकर उद्यानपालकों (चौकीदारों एवं मालियों) को बुलाकर इस प्रकार कहा “हे देवानुप्रियो ! जब पापित्य केशीकुमार श्रमण श्रमणचर्यानुसार विचरते हुए, ग्रामानुग्राम विहार करते हुए यहाँ पधारें तब (उनके आने पर) तुम केशीकुमार श्रमण को * वन्दना करना, नमस्कार करना। वंदना-नमस्कार करके उन्हें यथाप्रतिरूप-साधुकल्प के * अनुसार रहने की आज्ञा देना तथा प्रातिहारिक पीठ, फलक आदि के लिए प्रार्थना करना और इसके बाद उनके आगमन की मुझे सूचना देना।" चित्त सारथी की इस आज्ञा को सुनकर वे उद्यानपालक हर्षित हुए। विकसित हृदय होते हुए दोनों हाथ जोडकर बोले “हे स्वामिन् ! आपकी आज्ञा प्रमाण।'' यह कहकर उनकी आज्ञा विनयपूर्वक स्वीकार * की। ARRIVAL OF CHITTA AND HIS ORDERS TO GARDENERS 228. (After this assurance from Keshi Kumar Shraman) Chitta Saarthi bowed to Keshi Kumar Shraman, greeted him and then came from him through Koshthak garden. He came to his resthouse on the highway. ____He called the heads and said-"O the blessed ! Please bring quickly the four-belled house-driven chariot." Thereafter, he left Shravasti town in the same manner as he had earlier left Seyaviya town. Halting at places in between, he passed through Kunala district and then entered Kekaya-ardh state. He then came to Mrigavan garden of Seyaviya town. He called the security guards and gardeners of the area and said * “O the blessed ! When Keshi Kumar Shraman of Parshvanath order, during his wanderings in line with prescribed ascetic conduct reaches here, you (on his arrival) bow to him, honour him, allow him to stay according to the ascetic conduct. Further, you request * केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा ( 285) Keshu Kumar Shraman and King Pradeshi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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