Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 277
________________ He was always issuing orders to kill, pierce or cut into pieces (the guilty). His hands were always besmeared with wood, as if he is an emblem of sin (cruelty). By nature he was notorious, ferocious and of bad mentality. He was in the habit of doing actions without meditating about likely results thereof. He was encouraging the cheats and notorious people. He used to accept illegal gratification. He was deceiving others. He was of crooked nature troubling others by creating disputes. He was without any principles. He always engaged himself in violence, falsehood and suchlike sinful activities. He was devoid of pondering and suchlike qualities. He was not observing restriction of hunting one or one's wife, for sex activities. He was never inclined to observe any spiritual restrictions, fast, paushadh and suchlike. He was like the high flag of sin in killing human being animals and birds, reptiles like snakes and others in making them lifeless or he was like a satellite of sin. He never got up from seat seeing his parents as a mark of respect. He never greeted them. He never properly attended to his subjects even after collecting the taxes from them. विवेचन-जैन साहित्य मे साढे पच्चीस आर्य देशो और उन देशो की एक-एक राजधानी के नामो का उल्लेख है। पच्चीस देश तो पूर्ण रूप से आर्य थे किन्तु केकय देश का आधा भाग आर्य था। इसलिए यहाँ केकय-अर्ध जनपद कहा है। बौद्ध ग्रन्थो मे भी केकय देश का उल्लेख है। उस विद्वान् देश का वर्तमान स्थान उत्तर में पेशावर (पाकिस्तान) के आसपास मानते है। कुछ इतिहासकारो का कथन है-श्रावस्ती और कपिलवस्तु के बीच मे जहाँ नेपालगज है, वहाँ श्वेताम्बिका की स्थिति होनी चाहिए। यह श्रावस्ती * के उत्तर-पूर्व मे नेपाल की तराई मे स्थित है। राजा दशरथ की एक रानी का नाम 'कैकेयी' था। वह इसी केकय देश की थी, जिससे उसका नाम 'कैकेयी' पडा हो, यह भी सम्भव है। केकय देश की राजधानी के रूप मे 'सेयविया' नगरी का उल्लेख सूत्रो में किया गया है। आवश्यकनियुक्ति मे बताया है कि श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ अवस्था मे विहार करते हुए उत्तर वाचाल की तरफ गये और वहाँ से 'सेयविया' गये। इस नगरी के श्रमणोपासक राजा प्रदेशी ने भगवान की महिमा की और उसके पश्चात् भगवान वहाँ से सुरभिपुर पधारे। परन्तु वर्तमान मे यह नगरी कहाँ Ka है, एतद् विषयक कोई स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं है। दीघनिकाय (बौद्ध ग्रन्थ) के 'पायासि सुत्तत' मे इस नगरी का नाम ‘सेतव्या' बताया है और कौशल देश मे विहार करते हुए कुमार कश्यप इस नगरी मे आये थे। यह सूचित करके इसे कोसल देश का ॐ नगर बताया है रायपसेणियसूत्र (240) Rai-paseniya Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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