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पएसिस्स रन्नो रज्जं च रटुं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहर।
२०८. उस प्रदेशी राजा की रानी का नाम सूर्यकान्ता था । वह सुकुमाल हाथ-पैर आदि अंगोपांग वाली थी, इत्यादि धारिणी रानी के समान इसका वर्णन समझना चाहिए। वह रानी प्रदेशी राजा के प्रति अनुरक्त - अतीव स्नेहशील थी, उससे कभी विरक्त नहीं होती थी और इष्ट-प्रिय शब्द, सुखद स्पर्श, मनोहर रस आदि अनेक प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी सुखो का अनुभव करती रहती थी ।
प्रदेशी राजा का ज्येष्ठ पुत्र और सूर्यकान्ता रानी का आत्मज सूर्यकान्त नामक राजकुमार था। वह सुकोमल हाथ-पैर वाला था। वह सूर्यकान्तकुमार युवराज भी था । वह प्रदेशी राजा के राज्य (शासन), राष्ट्र (देश), बल (सेना), वाहन (रथ, हाथी, अश्व आदि), कोश, कोष्ठागार ( अन्न भण्डार), पुर और अन्तःपुर की स्वयं देखभाल करता था ।
QUEEN SURYAKANTA AND PRINCE SURYAKANT
208. Suryakanta was the queen of king Pradeshi. She was having delicate body. Her description may be considered as that of queen Dharani. She loved king Pradeshi very much and was completely attached to him. She never detached herself from him. She was enjoying words of love, pleasant touch, fine taste and other comforts of human-beings.
The eldest son of king Pradeshi, born of queen Suryakanta was prince Suryakant. He was having beautiful hand and feet. He had been declared as the rightful successor (Yuv-raj). He was himself looking after the administration, the affairs with other countries, the army, vehicles, treasure, the provision, bins and inner affairs of the palace.
चित्त सारथी : मंत्री
२०९. तस्स णं पएसिस्स रन्नो जेट्टे भाग्यवयंसए चित्ते णामं सारही होत्था, अड्डे जाव बहुजणस्स अपरिभूए । साम-दंड-भेय - उवप्पयाण - अत्थसत्थ - ईहा - मइविसारए, उप्पत्तिया - वेणतिया - कम्मयाए- पारिणामियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेए । पएसिस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य कुटुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रंहस्सेसु य निच्छएसु यववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबणं, चक्खु,
केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
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Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi
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