Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 291
________________ के धारक, करणप्रधान - पिडविशुद्धि आदि करणसत्तरी मे जागरूक, चरणप्रधान - महाव्रत आदि चरणसत्तरी में कुशल, निग्रहप्रधान -मन और इन्द्रियो को अनाचार - प्रवृत्ति से रोकने में सदैव सावधान, तत्त्व का निश्चय करने मे प्रधान, आर्जवप्रधान - माया का निग्रह करने वाले समर्थ, मार्दवप्रधान - अभिमानरहित, लाघवप्रधान-क्रिया करने मे कुशल - दक्ष, क्षमाप्रधान - क्रोध का निग्रह करने में कुशल, गुप्तिप्रधान - मन, वचन, काय के संयमी, मुक्तिप्रधान - निर्लोभता में श्रेष्ठ, विद्याप्रधान - देवता - अधिष्ठित प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के ज्ञाता, मंत्रप्रधान - हरिणेगमैषी आदि देवो से अधिष्ठित अथवा साधना से प्राप्त होने वाली विद्याओं के ज्ञाता, ब्रह्मचर्य अथवा समस्त कुशल अनुष्ठानो में प्रधान, वेदप्रधान - लौकिक और लोकोत्तर आगमों में निष्णात, नयप्रधान - नय - निक्षेप प्रधान वचन शैली के मर्मज्ञ, नियमप्रधान-विचित्र अभिग्रहों को धारण करने में कुशल, सत्यप्रधान, शौचप्रधान- द्रव्य और भाव से ममत्वरहित, ज्ञानप्रधान, दर्शनप्रधान, चारित्रप्रधान, उदार, घोर परीषहों, इन्द्रियों और कषायों आदि आन्तरिक शत्रुओं का निग्रह करने में कठोर, घोर व्रती - अप्रमत्तभाव से महाव्रतों का पालन करने वाले, घोर तपस्वी - महातपस्वी, घोर ब्रह्मचर्यवासी - उत्कृष्ट अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले, शरीर - संस्कार के त्यागी, विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर मे ही गुप्त रखने वाले, चौदह पूर्वों के ज्ञाता, चार ज्ञान - मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यायज्ञान के धारक थे। केशीकुमार श्रमण पाँच सौ अनगारों के साथ-साथ अनुक्रम से चलते हुए, ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए, सुखे-सुखे विहार करते हुए जहाँ श्रावस्ती नगरी थी, जहाँ कोष्ठक चैत्य था, वहाँ पधारे। श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्ठक चैत्य में यथोचित अवग्रह को ग्रहण किया अर्थात् स्थान की याचना की और फिर स्थान की अवग्रह - मर्यादा कर संयम एव तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । ARRIVAL OF KESHI KUMAR SHRAMAN IN SHRAVASTI 213. At that time during that period there was Keshi Kumar Shraman who belonged to the tradition of Bhagavan Parshvanath. He had these qualities Jati-sampanna-It means he belonged to high clan from maternal side, Kul-sampanna-It means he belonged to high caste from paternal side. He possessed great strength of soul, Roopvaan-He was more handsome them gods of Anuttar Viman, humble and possessed right faith, right knowledge and right conduct, Lajja-vaan-He was afraid of doing any sinful act, रायपसेणियसूत्र Rai-paseniya Sutra Jain Education International (254) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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