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२१७. कंचुकी पुरुष से यह बात सुन-समझकर चित्त सारथी ने हृष्ट-तुष्ट यावत् हर्षविभोर हृदय होते हुए कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाया। बुलाकर उनसे कहाॐ “हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घटो वाले अश्व-रथ को जोतकर उपस्थित करो।"
कौटुम्बिक पुरुष शीघ्र ही छत्र सहित अश्व-रथ को जोतकर ले आये। DEPARTURE OF CHITTA SAARTHI FOR DARSHAN
217. After listening the words of the attendant and understanding them properly, Chitta felt satisfied and very happy. He, then, with great happiness called the heads of the family and asked them—“O the blessed ! You quickly prepare the four belled horse-driven chariot and bring it here.” The heads of the family complied the orders and brought the horse-driven cart along with the umbrella.
२१८. तए णं से चित्ते सारही बहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जेणेव चाउग्धंटे * आसरहे तेणेव उवागच्छइ।
उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगरेण विंदपरिक्खित्ते सावत्थी नगरीए मझमझेणं निग्गच्छइ। निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसिकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता केसिकुमारसमणस्स अदूरसामंते तुरए णिगिण्हइ रहं ठवेइ य, ठवित्ता पच्चोरुहति। पचोरुहित्ता जेणेव केसिकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसिकुमारसमणं तिक्खुत्तो आयाहिणं-पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ, नमंसित्ता णच्चासण्णे णाति
दूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पञ्जुवासइ। की २१८. तब तक चित्त सारथी ने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक मंगल प्रायश्चित्त किया और शुद्ध एवं बाहर जाने योग्य मांगलिक वस्त्र पहने, अल्प भार वाले बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया और उसके बाद वह चार घण्टों वाले अश्व-रथ के पास आया।
रथ के पास आकर उस चातुर्घट अश्व-रथ पर आरूढ हुआ एवं श्वेत-कोरट पुष्पों की मालाओं से सुशोभित छत्र धारण करके सुभटों के विशाल समुदाय के साथ श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच होकर निकला। निकलकर जहाँ कोष्ठक चैत्य था, उसमें जहाँ केशीकुमार श्रमण विराज रहे थे, वहाँ आया। आकर केशीकुमार श्रमण से कुछ दूर घोड़ों को रोका, रायपसेणियसूत्र
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Ral-paseniya Sutra
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