Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 306
________________ रथ खडा किया। रथ खडा कर उससे नीचे उतरा। उतरकर जहाँ केशीकुमार श्रमण थे, के पास आया। आकर केशीकुमार श्रमण की तीन बार प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार करके धर्मोपदेश सुनने की इच्छा से न अधिक दूर न ही अधिक नजदीक, समुचित स्थान पर उनके सम्मुख बैठकर नमस्कार करता हुआ विनयपूर्वक अजलि करके पर्युपासना करने लगा। ___218. In the mean time Chitta Saarthi took a bath, decorated himself with auspicious symbols and put on the worthy dress meant for going out and costly light weight ornaments. He then he came near the four belled horse-driven chariot. Thereafter he got into the chariot. He had the umbrella decorated with garlands of pure-white Korant flowers. He was in the large company of soldiers. He passed through Shravasti town and to the place in Koshthak garden where Keshi Kumar Shraman was seated. He stopped the horses at a distance halted the chariot and then got down the chariot. He then came to Keshi Kumar Shraman, bowed to him moving his hands thrice in a circle. Thereafter in order to carefully listen his spiritual discourse he sat in front of him neither very far nor very close to him, bowing to him with folded hands and showing his regards for him. केशीकुमार श्रमण की देशना __ २१९. तए णं से केसिकुमारसमणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए महचपरिसाए चाउज्जामं धर्म परिकहेइ। तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सबाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। ____तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्म सोच्चा-निसम्म जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया। २१९. केशीकुमार श्रमण ने चित्त सारथी और उस अतिविशाल परिषद को उपस्थित देखकर चार याम धर्म का उपदेश दिया। उन चातुर्यामों के नाम इस प्रकार हैं (१) समस्त प्राणातिपात (हिंसा) से विरमण (निवृत्त होना), (२) समस्त मृषावाद a (असत्य) से विरत होना, (३) समस्त अदत्तादान से विरत होना, (४) समस्त बहिद्धादान (बहिद्धा-स्त्री, आदान-धन परिग्रह अर्थात् स्त्री और सम्पत्ति का संग्रह) से विरत होना। केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (269) Keshu Kumar Shran.an and King Pradeshak Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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