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respective field. He enjoyed the activities pleasing to the five senses namely sense of hearing, sense of touch, sense of taste, sense of smell and sense of sight. श्रावस्ती में केशीकुमार श्रमण का पदार्पण
२१३. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जेि केसी नाम कुमारसमणे। ___ जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसणसंपन्ने चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे लज्जा-लाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणिद्दे जितिंदिए जियपरीसहे जीवियास-मरणभयविष्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविपुलतेउलेस्से चउद्दसपुबी चउणाणोवगए।
पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिबुडे पुवाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव कोट्टए चेइए, तेणेव उवागच्छइ, सावत्थी नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हइ, उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।
२१३. उस काल और उस समय में भगवान पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा के केशी 0 नामक कुमार श्रमण थे (वे ऐसे थे)
___जातिसम्पन्न-उत्तम मातृ-पक्ष वाले, कुलसम्पन्न-उत्तम पितृ-पक्ष वाले, आत्मबल से युक्त, रूपवान-अनुत्तर विमानवासी देवों से भी अधिक रूपवान (शरीर-सौन्दर्य वाले), विनयवान, सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र के धारक, लज्जावान-पाप कार्यो के प्रति भीरु, लाघववान्-(द्रव्य से अल्प उपधि वाले और भाव से ऋद्धि, रस और साता रूप तीन गौरवों से रहित), लज्जालाघव-सम्पन्न, ओजस्वी-मानसिक बल से सम्पन्न, तेजस्वी-शारीरिक कांति से देदीप्यमान, वर्चस्वी-सार्थक और प्रभावशाली वचन बोलने वाले, यशस्वी, क्रोध को जीतने वाले, मान को जीतने वाले, माया को जीतने वाले, लोभ को जीतने वाले, जीवित रहने की आकांक्षा एवं मृत्यु के भय से विमुक्त, तपःप्रधान-उत्कृष्ट तप करने वाले, गुणप्रधान-उत्कृष्ट सयम गुण केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(253) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi
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