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a saint carefully, Ghor-tapasvi-He was great in observing
austerities, penances, Ghor-brahmcharyavasi-He was observing complete celibacy of highest order. He had discarded all decorations of the body. He was keeping the energy derived by Tejoleshya (practice of attaining fiery energy) completely in his control within his body. He had studied all the fourteen Poorvas. He had four types of knowledge-physical, scriptural, transcendental and reading modes of the mind.
Keshi Kumar Shraman and his five hundred disciples, while passing from one village to the other in a solemn quiet manner
reached Koshthak temple in Shravasti town. He after seeking en permission of the area and then limiting the boundary of the area
for use, stayed there observing self-restraints and austerities (for
self-purification). ____ विवेचन-केशीकुमार श्रमण का परिचय-इतिहास लेखको का मत है कि सम्राट् प्रदेशी प्रतिबोधक * केशीकुमार श्रमण भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के चतुर्थ पट्टधर थे। प्रथम पट्टधर प्रथम गणधर आचार्य
शुभदत्त थे। उनके उत्तराधिकारी आचार्य हरिदत्त सूरि हुए, जिन्होंने वेदान्तदर्शन के प्रसिद्ध आचार्य ‘लोहिय' को शास्त्रार्थ मे पराजित कर प्रतिबोध दिया और लोहिय को ५०० शिष्यों के साथ दीक्षित किया। उन नवदीक्षित श्रमणो ने सौराष्ट्र, तैलग (आन्ध्रा) प्रभृति प्रान्तो मे विचरण कर जैन-शासन की प्रबल प्रभावना की। तृतीय पट्टधर आचार्य समुद्र सूरि थे। उन्ही के समय 'विदेशी' नामक महान् प्रभावशाली आचार्य ने उज्जयिनी नगरी के अधिपति महाराज जयसेन, महारानी अनगसुन्दरी और
राजकुमार केशी को प्रतिबोध देकर दीक्षित किया। ___आगम साहित्य मे केशी श्रमण का राजप्रश्नीय और उत्तराध्ययन, इन दो आगमो मे उल्लेख हुआ
है। इन आगमो मे उल्लिखित केशी एक ही व्यक्ति है या पृथक्-पृथक् ? अनेक विद्वानो ने राजा प्रदेशी * के प्रतिबोधक केशीकुमार श्रमण को और गणधर गौतम के साथ सवाद करने वाले केशीकमार श्रमण
को एक ही माना है, परन्तु हमारी दृष्टि से दोनो पृथक्-पृथक् व्यक्ति होने चाहिए। क्योकि सम्राट प्रदेशी
को प्रतिबोध देने वाले चतुर्दशपूर्वी और चार ज्ञान के धारक थे जबकि गणधर गौतम के साथ चर्चा करने ॐ वाले केशीकुमार श्रमण तीन ज्ञान के धारक थे। यद्यपि दोनो ही पार्श्व परम्परा के प्रतिनिधि है और दोनो
के नाम भी एक समान हैं। लगता है केवल नाम-साम्य होने से मनीषियो को भ्रम हो गया है और उन्होने
दोनो को एक माना है। केशीकुमार श्रमण के गुणो का जो वर्णन यहाँ किया है उससे स्पष्ट होता है कि वे 6 अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। जिनका रूप, सौन्दर्य, तेज और वचन-चातुरी देखकर प्रदेशी
राजा जैसा धर्मद्वेषी भी आकर्षित हुआ और उनके पास खिचा चला आया। इस विषय मे विद्वानो में - भिन्न-भिन्न धारणाएँ है।
- रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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