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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार स्वर्ग मे एक शाश्वत जिनालय सिद्धायतन होता है, जहाँ तीर्थकरो की प्रतिमाएँ स्थापित की रहती है । वहाँ उत्पन्न होने वाला देव अपनी मर्यादानुसार उन प्रतिमाओ की पूजा-अर्चा करता है । यह उन देवो का जीत आचार-परम्परागत कर्त्तव्य बताया है।
Elaboration-A study of this accounts indicates that wonderful expertise of making ornaments and dresses of different types was prevalent in that period To beautify the body, garlands of flowers and fragrant powder and suchlike were used.
Vyavasaya Sabha normally means the centre or office for running business. But here it means library. In this book (Pustak Ratna), there is a mention of duties and directions for gods taking birth in heaven. To go round the library before entering it is a mark of respect for it. At this occasion, the ethical conduct is worth consideration.
According to Jambu Dveep Prajnaptı, there is an eternal temple (Siddhayatan) in the heaven where there are the idols of Tirthankar. The gods taking birth there, worship those idols according to their traditional custom. This is an age-old tradition in those gods according to that book. सिद्धायतन का प्रमार्जन
१९७. तए णं ते सूरियाभं देवं चत्तारि य सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अत्रे य बहवे सूरियाभविमाणवासिणो जाव देवीओ य अप्पेगतिया देवा उप्पलहत्थगा जाव सय - सहस्सपत्त - हत्थगा सूरियाभं देवं पिट्ठतो समणुगच्छंति । तए णं तं सूरियाभं देवं बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिआ कलसहत्तगा जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगता हट्ठतुट्ठ जाव सूरियाभं देवं पिट्ठतो समनुगच्छति ।
१९७. तब उस सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा कितने ही अन्य बहुत से सूर्याभ विमानवासी देव और देवी भी उत्पल, शतपत्र-सहस्रपत्र कमलों को हाथों में लेकर सूर्याभदेव के पीछे-पीछे चले। सूर्याभदेव के बहुत-से आभियोगिक देव और देवियों हाथो में कलश यावत् धूपदानों को लेकर हर्षित होते हुए सूर्याभदेव के पीछे-पीछे चले।
CLEANING OF SIDDHAYATAN (ETERNAL TEMPLE IDOLS)
197. Thereafter 4,000 Saamanik gods upto 16,000 body-guard gods and many other resident gods and goddesses of Suryabh Viman, took utpal, hundred-leaved lotus, thousand-leaved lotus in
रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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